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________________ २२२ १५ ५ १० दुवई - थक्को धयवडम्मि पक्खुग्गयपवणुड्डु वियपडिणिवो ॥ चलचंचेले चुंचुंबिय चंद घरो खगाहिवो ॥ संणद्धु पयावइ दोहबाहु उच्चारिविजिणवरणाममंतु हु वह जडि हुयवहफुरणतिब्बु पहरण लेंतु रणदारुणाई संचोइड कुंजरु गज्जमाणु "निश्चिचंचें रोमंचरण भडुको विण खग्गहु देइ हत्थु भडुको विण लावइ घुसिणु अंगि महापुराण घत्ता - गेज्जावलिमुहालि रुंजियभसलि अरिकरिंदपसरियकरि ॥ अविश्यगलियमइ हरि मत्तगइ चडिउ सीहु णं महिहरि ॥ १०॥ ११ [ ५२. १०. १५ असितडिहरु णं खयसलिलवाहु । संणाहुइ मणि जिगिजिगंतु । तरुहु भुयबलगहियगव्वु । दिव्वई वायव्वें वारुणाई । ore गेण्es दिण्णउं देहताणु | कंपाविय रिड. कंपियधएण | परपहरणहरैणि सया समत्थु । रास तणु रिरुहरु अंगि । धत्ता - हरिसें को वि णरु थिरथोरकरु धर्णुहरु जं जं णावइ ॥ पीडिउं कडयडेइ मोडिवि पडइ तं तं थावेहुँ णावइ ||११|| घत्ता - जो गलेके आभूषणसे मुखर है, जिसपर भ्रमर गूंज रहे हैं, शत्रु गजवरपर जिसकी सूँड़ प्रसारित है, जिससे अविरत मदजल गिर रहा है; ऐसे मत्त गजपर नारायण त्रिपृष्ठ चढ़ गया मानो सिंह पहाड़ पर चढ़ गया हो ||१०|| ११ जिसके पंखोंसे उत्पन्न पवनसे शत्रुनृप उड़ चुके हैं, जिसने अपने चंचल मुखसे सूर्य और चन्द्रमाके विमानों को छू लिया है, ऐसा गरुड़ ध्वजपटपर स्थित हो गया । दीर्घ बाँहोंवाला प्रजापति तैयार होने लगा मानो तलवाररूपी बिजली धारण करनेवाला प्रलय मेघ हो । जिनवरके नामरूपी मन्त्रका मनमें उच्चारण कर जिगजिगाता हुआ ( चमकता हुआ ) कवच ले लिया । अग्नि स्फुरण समान तीव्र ज्वलनजटी, अपने बाहुबल में गर्व रखनेवाले उसके पुत्र अर्ककीर्तिने युद्ध में दारुण दिव्य वायव्य और वरुण, अस्त्र ले लिये । उसने गरजते हुए हाथीको प्रेरित किया । उसने दिया गया देहत्राण ( कवच ) नहीं पहना । नित्य ऊँचे रहनेवाले रोमांच और कांपते हुए ध्वजसे उसने शत्रुको कँपा दिया । कोई योद्धा तलवारपर हाथ नहीं देता, क्यों वह शत्रुके हथियार छीनने में सदा समर्थ रहता है । कोई सुभट अपने शरीरपर केशर नहीं लगाता, वह युद्ध में शत्रुके खून से अपने शरीरको रंजित करेगा । Jain Education International घत्ता - कोई मनुष्य हर्षसे धनुषको धारण करनेवाले अपने स्थिर और स्थूल हाथको जिसजिसपर धनुष झुकाता है वह पीड़ित होकर कड़कड़ कर उठता है, टूटकर गिर पड़ता है, वह शक्ति सहन नहीं कर पाता ॥११॥ ७. A रंजियभसलि । ८ AP अविरल । o ११. १. AP॰चंचेलचंचुचुंबियं । २. A चंद करो । ३. A उच्चाइवि । ४. AP वायव्वई । ५. A णिच्चेच्चुंचे रोमं ; P णिच्चिच्च सररोमं T णिच्चिच्च निरन्तरम् । ६. AP हरण सया । ७. AP लावेसइ । ८. P धणहरु । ९. A कडयलइ । १०. P थामह । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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