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________________ - ५२.१०.१४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घन्ता - कुण्हहु देवयहिं पुण्णागयहिं गुणपणामसंपणेउं ॥ सँत्ति अमोहमुह तूस वियसुहि धणु सारंगु विइण्णउं ॥ ९ ॥ १० to वि गय हयगय दिण्ण तासु बलएवहु लंगलु मुसलु चारु दसैँदिसवहधाइय किरणजाल कंचणकवयंकित धवलदेहु गुर्णेविसरास धरिउ केंव सेयई चिंधई उपरि चलति छत्तई णं जयजसस सिपयाई धरियई पाइकहिं पंडुराई दीहरदाढा वडाणणेहिं पक्खरिय सत्ति हिलिहिलिहिलंत हणु हणु भणत मच्छर विमीस रणतूरसहासई तोडियाई दुवई - आणिवि सुरवरेहिं चिरु रक्खिउ मंगलझुणिणिणाइओ || _tors पंचणु कोत्थुहमणि असि हरिणो णिवेइओ ॥ कोमुइ णामें दामोयरासु । गय चंदिमे णामें हथियारु । दिण्णी उरि घोलइ रयणमाल । णं संज्ञाराएं सरयमेहु । मुट्ठ माइ सुकन्तु जैव । णं कित्तिवेल्लिपल्लव ललंति । णं गोमिणिपोमिणिपंकयाइं । विणिवारिय दिवसाहिवकराई । रहवर कडूढि पंचाणणेहिं । कैयसारिसेज्ज गय गुलुगुलंत । संणद्ध सुहड पण वियहलीस | कुलगिरिवरसिहर पाडियाई । घत्ता - पुण्यसे आयी हुई देवियोंने सन्तुष्ट करनेवाली अमोघमुखी शक्ति कृष्ण Jain Education International २२१ १५ १० प्रत्यंचाके नमनसे युक्त बलवान् धनुष और सज्जनोंको ( नारायण त्रिपुष्ठ ) को प्रदान की ||९|| १० देवोंने चिरकालसे सुरक्षित तथा मंगल ध्वनिसे निनादित पांचजन्य शंख, कौस्तुभ मणि और तलवार नारायणके लिए निवेदित की। और भी गदा, हाथी, घोड़े और कौमुदी नामका शस्त्र उन दामोदरके लिए दिया। जिसकी किरणोंका जाल दसों दिशाओं में फैल रहा है ऐसी दी हुई रत्नमाला उनके उरपर पड़ी हुई है। सोनेके कवचसे अंकित धवल शरीर वह ऐसे मालूम होते हैं, मानो सन्ध्यारागसे शरद् मेघ शोभित हो । प्रत्यंचासे झुका हुआ धनुष उन्होंने इस प्रकार रखा, मानो जैसे मुट्ठीसे सुकलत्रको माप लिया हो । श्वेत चिह्न उनके ऊपर चलते हैं, मानो कीर्तिरूपी लताके पत्ते शोभित हों । जययशरूपी चन्द्र के स्थानभूत छत्र ऐसे मालूम होते हैं मानो पृथ्वीरूपी लक्ष्मीके कमल हों; सूर्यकी किरणोंका निवारण करनेवाले उन सफेद छत्रोंको अनुचरोंने उठा लिया। लम्बी दाढ़ोंसे विकट मुखवाले सिहोंने रथवरोंको खींच लिया । कवच पहने हुए सप्ताश्व हिनहिना उठे, पर्याणसे सज्जित गज चिग्घाड़ने लगे । मत्सरसे भरे हुए और 'मारो-मारो' कहते हुए तथा जिन्होंने बलभद्रको प्रणाम किया है, ऐसे योद्धा तैयार होने लगे । युद्धके हजारों नगाड़े बजाये जाने लगे तथा कुलगिरियोंके शिखर टूटकर गिरने लगे । For Private & Personal Use Only ६. AP संपूण्ण । ७. AP सत्तियमोहमुहि । १०. १. A हयरह दिष्ण । २. AP चंदियणा में । ३. A दहृदिहहवघाहिये ; P दहदिसिवहृषाइय । ४. P गुणमि । ५. AP कय सज्ज सारि । ६. P वाडियाई । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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