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________________ -५२. ६.१० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सहुं णंदणेण चंदाहिचिंधु । आरु सुट्टु खयकालवेसु । अण्णु वि जो दिट्ठउ पीयवासु । देव वि संकाइ णवंति जासु । खलयणमलणु देवयाउ साहेपिणु ॥ वलइयधणुवलय णं खयजलय थिय महिहरि आवेष्पिणु ||५|| ६ रहणेउरवइ णरवइ सबंधु अण्क्कु पयावइ पोयणेसु अक्कु मुसलि तहिं कसणवासु किं अक्खमि पहुसामत्थु तासु घत्ता - णिसुणिवि तुह चलणु दुवई - चवइ खर्गिदचंदु करवालविहंडियतुरय करिसिरे ॥ रत्ततरंतमत्तरयणीयरि णिणविं रिडं रणाइरे ॥ ता कहइ मंति णामें विहाउ जइ आणलंघणु कउ तेहिं एहउ आयारु णराहिवाह सो दूयउ जो भासापवीणु सो दूय उ जो अँहिमाणि दाणि सो दूयउ जो गंभीरु धीरु सो दूयउ जो परचित्तलक्खु सो दूयउ जो बुज्झियविसेसु जगभि एवहिं तुहुं जि ताउ । सुय दिण्ण पडिच्छिय पत्थिवेहिं । पेसिज्जउ दूयउ को वि ताहं । सो ' दूयउ जो पंडिउ अदीणु । सो दूर जो मिमहुरवाणि । सो दूर जो जयवंतु सूरु । सो दूर जो पोसियसपक्खु । सो जो सुविसिटुवेसु । २१७ १० आक्रान्त किया है । रथनूपुरका स्वामी अपना बन्धु राजा ( ज्वलनजटी ), तथा पुत्रके साथ, चन्द्रमाके समान उज्ज्वल सर्पध्वजवाला एक दूसरा पोदनपुरका स्वामी प्रजापति क्षयकाल के रूप में तुमपर अत्यन्त क्रुद्ध है। एक ओर विजय बलभद्र नीलवस्त्रोंवाला है और दूसरा जो पीले वस्त्रोंवाला दिखाई देता है, मैं उसकी प्रभुसामर्थ्यका क्या वर्णन करूँ ? देव भी शंकासे उसे नमन करते हैं । Jain Education International १५ घत्ता- तुम्हारे दुष्टजनों का मर्दन करनेवाले प्रस्थानको सुनकर, विद्यादेवियोंको सिद्ध कर, जिन्होंने धनुष की प्रत्यंचाओं को तान लिया है, ऐसे वे, मानो क्षयकालके मेघोंके समान पर्वतपर आकर ठहर गये हैं ॥५॥ ६ तब विद्याधर राजा कहता है, 'जिसमें घोड़ों और हाथियोंके सिर तलवारसे खण्डित होते हैं, तथा रक्त में निशाचर तैरते हैं, ऐसे युद्धप्रांगण में, मैं शत्रुको मारूंगा ।" इसपर विधाता नामका मन्त्री कहता है, "इस समय विश्वरूपी बालकके तुम पिता हो, यदि उन राजाओंने आज्ञाका उल्लंघन किया है और दी हुई कन्याको स्वीकार कर लिया है, तो महाधिपोंका यही आचार है कि उनके पास कोई दूत भेजा जाये । दूत वह है जो भाषा में प्रवीण हो, वह दूत है जो विद्वान् और अदीन हो, वह दूत है जो स्वाभिमानी और दानी है, वह दूत है जो मधुर वाणी बोलनेवाला है, वह दूत है जो गम्भीर और धीर है, वह दूत है जो नीतिवान् और शूर है । वह दूत है जो दूसरेके मनका ज्ञाता है, वह दूत है जो अपने पक्षका समर्थन करनेवाला है, वह दूत है जो विशेषको ७. A चंदाहचिधु; T चंदाहबिबु चन्द्रनागबिंबा: । ८. A मारुतु । ६. १. A खगिदचंडु । २. A हिणिवि । ३. A मियमडुरवाणि । ४. A अभिमाणि दाणि । ५. A सारु । ६. A सुविसुद्ध । २८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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