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________________ २१८ महापुराण [ ५२.६.११ सो दूयट जो कयसंधिणामु सो दूयउ जो दज्जरियसामु । सो दूयउ जो णिहिट्ठमंतु सो दूयउ जो कुलजाइवंतु । सो दूयउ जो उवइँट्टदंडु सो दूयउ जो संगामचंडु। सो दूयउ जो रिउहिययसूलु सो दूयउ पेसिउ रयणचलु । णिवसंतगरुयखंधाररोलु तं गच्छिवि गिरिगहणंतरालु पणवेवि तेणे पालियविसिछु ___ अत्थाणि णिविठु तिविठु दिछु । पत्ता-दूएं वज्जरिउं पहु विप्फुरिउ दिव्वपुरिसगुंणजाणउ । गुणिगहणुज्जि तुहुं अणुहुँजि सुहं पेक्खु णवेप्पिणु राणउ ।।६।। दुवई-जा मैग्गिय णिवेण खगसुंदरि सा तुह होइ सामिणी ।। देवि खमंसणिज सा कामहि किं कामंध कामिणी ।। मा रस काउ चप्पिवि कवाल भक्खंतु म गिद्ध भडंतजाल । मा सरसयणीयलि.सुयउ ताउ मा पोयणपुरवरु खयहु जाउ । मा उट्टउ रहचूरणणिहाउ भज्जंतु म चामरछत्तकेउ । दीसउ मा सयणहं मरणेहेउ रसवससमुहकंकालसेउ । मा रुहिरु कालवेयालु पियउ मा सूरकित्ति जमकरण णियड । मा करउ मृगावइ पुत्तदुक्खु मा छिज्जेउ हलहरेकप्परुक्खु । जाननेवाला है, वह दूत है जो विशिष्ट वेशवाला है, वह दूत है जो सन्धान करना जानता है, वह दूत है जो 'साम'का कथन करनेवाला है, वह दूत है जिसने दण्डका उपदेश दिया हो, वह दूत है जो कुलीन और जातिवाला हो, वह दूत है जो युद्ध में प्रचण्ड हो, वह दूत है जो शत्रुके लिए हृदयका कांटा हो । ऐसा वह रत्नचूड़ नामका दूत भेजा गया। जिसमें निवास करते हुए स्कन्धावारका भयंकर शब्द है, ऐसे उस गिरिके गहन अन्तरालमें जाकर, उसने प्रजाका पालन करनेवाले दरबारमें आसनपर बैठे हुए त्रिपृष्ठको देखा। धत्ता-दूतने कहा-“हे प्रभु, विकसित दिव्य पुरुषके गुणगणके ज्ञाता गुणी व्यक्तिको ग्रहण करने में ओजस्वी तुम सुखका भोग करो और प्रणाम कर राजासे मिल लो ॥६॥ और जो राजा (अश्वनीव) ने विद्याधर सुन्दरी मांगी है, वह तुम्हारी स्वामिनी होती है। जो देवी तुम्हारे द्वारा नमन करने योग्य है, उस स्त्रीको हे कामान्ध तू क्यों चाहता है ? तुम्हारे सिरपर बैठकर न बोले, योद्धाओंके आंतोंके जालको गीध न खायें, तुम्हारे पिता तीरोंके शयनीयतलपर न सोयें, पोदनपुर नगर क्षयको प्राप्त न हो, रथोंके चूर्ण होनेका शब्द न हो, चमर-छत्र और ध्वज नष्ट न हों, स्वजनोंके मरणका कारण रस और मज्जाके समुद्र में कंकाल सेतु दिखाई न दे, कालरूपी बेताल रुधिर न पियें, शूरकी कीतिको यमके अनुचर न देखें। मृगावती पुत्रके दुःख ७. P उवइट्टइंदु । ८. P संगामि चंडु । ९. A ते वि । १०. A°पुरिसु । ११. AP गुणिगहणिज्जु । ७.१. A मग्गिय खगेण णिवसुंदरि। २. AP मरणभेउ। ३.A संगरसमुद्द। ४. AP मिगाव । ५. A छिज्जइ । ६. AP हलहरु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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