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________________ २०० महापुराण महिणाहेण उत्तु पइसारहि पुरिसु संसामिकजरहसारहि । ता कणइल्ले आणिवि दाविउ .. खयरु णवंतु अउवु विहाविउ । तहु पणवंतहुं णियडउ आसणु दरिसिउं मणिगणकिरणुष्भासणु । इठ्ठ भणिवि जाणिउं मुहराएं पृयवयणहिं संभासिउराएं। कहिं होतउ सुंदरणिक्केयउ। को तुहुँ कह सु कासु किं आयउ । अक्खइ विर्ययरु पालियखोणिहि । रुप्पयगिरिवरदाहिणसेणिहि । णमिकुलणहयलवलयहु णेसरु रिद्धिइणं सयमेव सुरेसरु। . . रहणेउरपुरवरपरमेसरु । देव जलेणजडि णाम खगेसरु । वाउवेय पिययम लीलागइ अक्ककित्ति तणुरुहुणं रइवइ । धूय सयंपह कि वणिज्जइ मुहससिजोण्हइ चंदु वि खिजइ। घत्ता-थणहारें भग्गु जाहि मज्झु किसु सोहइ ॥ णहपंतिपहाइ तारापंति ण रेहइ ॥५॥ करकमेयलई कुमारिहि रत्तई णाहिहि जइ गंभीरिम दीसह भालव१ पटु व रइरायहु ताहं कुमारसहासई रत्तई। ते मुणिहिं वि गंभीरम्व णासइ । चिहुरकुडिलकोडिल्लु व आयहु । महीनाथने कहा कि अपने स्वामीके कार्यरूपी रथका निर्वाह करनेवाले उस पुरुषको भीतर प्रवेश दो। तब प्रतिहारीने उसे बुलाकर दिखाया। प्रणाम करता हुआ वह विद्याधर सुन्दर दिखाई देता था। प्रणाम करते हुए उसे मणिकिरण-समूहसे आलोकित आसन पास ही दिखाया गया। इष्ट समझकर उसने मुखके भावसे जान लिया। राजाने प्रिय शब्दोंमें उससे बातचीत की कि तुम्हारा सुन्दर घर कहां है, तुम कौन हो, किसके हो। यहाँ क्यों आये ? विद्याधर कहता है कि धरतीका पालन करनेवाले विजयाधं पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें हे देव, ज्वलनजटी नामका राजा है, जो नमिकुलके आकाशमण्डलका सूर्य है, ऋद्धिमें जो मानो स्वयं इन्द्र है और रथनूपुर नगरका परमेश्वर है। लोलापूर्वक चलनेवाली उसकी वायुवेगा नामकी प्रियतमा है। और पुत्र अर्ककीति है जो मानो कामदेव है। उसकी कन्या स्वयंप्रभाका क्या वर्णन किया जाये ? वह अपने मुखरूपी चन्द्रमाको ज्योत्स्नासे जो चन्द्रमाको भी खिन्न कर देती है।। घत्ता-स्तनभारसे भग्न जिसका दुबला पतला मध्यभाग नखपंक्तिप्रभासे इस प्रकार शोभित है, मानो तारापति शोभित हो ।।५।। कुमारीके कररूपी कमल रक्त (लाल) हैं। उनसे हजारों कुमार अनुरक्त हैं। उसकी नाभिमें जो गम्भीरता दिखाई देतो है, उससे मुनियोंकी भी गम्भीरता नष्ट हो जाती है। उसका ५.१. AP सुसामि । २. AP पियवयहिं । ३. P कासु कहसु कहिं । ४. A वइयरु । ५. A जडणजडि । ६. AP थणभारें। ६.१. AP कमलयई । २. AP तहि । ३. AP गंभीरिम । ४. A भालबद्ध पट्ठ व; P भालवटु वटु व । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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