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________________ -५१.७.५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सुरणरविसहरहिययवियारा णयण विसिह णं तासु जि केरा। जाहि रूवसिरि णे परपराइय सा फुल्लंति वेल्लि जिह जोइय । ताएं धीय बीय णं चंदें वोल्लि सज्जणणयणाणंदें । दुम्मयमलकलंकपक्खालणि मंतिहिं अग्गइ मंतिणिहेलणि । भो संभिण्ण णिसुयजोइससुय भणु भणु कासु घरिणि होसइ सुय । भणु भणु भव मज्झु भवियम्वई पई दिट्ठाई अणेयइ दिवई । देहदित्तिणित्तेइयचंदई केवलणाणधरई रिसिवंदई। ता संभिण्णे भणि णिसामहि मई चिरु पुच्छिये संजय सावहि । दाहिणभरहि सुरम्मइ मंडलि घरसिहरालिंगियरविमंडलि । घत्ता-पोयणपुरि राउ जसु जसु देवहिं गिज्जइ ॥ पालियसम्मत्तु जो जिणणय पडिवज्जइ ॥६॥ १० चिरु पुरुएवहु दिग्गयगामिहि जो बाहुबलि पुत्तु जगसामिहि । भरहु जेण मुयदंडहिं भामिउ जो जायउ पंचमगइगामि । पुरिसपरंपराहि तहु जायउ । णाम पयावइ जो विक्खायउ । जयवइ तासु देवि गरुयारी । अवर मृगावइ प्राणपियारी। अचल पबलभुयतोलियगुरुगिरि ताहं बिहिं वि जाया हलहर हरि । भालपट्ट कामदेवका पट्ट है। उसके बालोंका कुटिल कौटिल्य भी इसीका है। सुर-नर और विषधरोंके हृदयका विदारण करनेवाले उसके नेत्र भी कामदेवके ही तीर हैं। जिसको रूपलक्ष्मी दूसरों के द्वारा पराजित नहीं है, वह खिली हुई लताके समान देखी जाती है, पितासे पुत्री ऐसी लगती है जैसे चन्द्रमासे द्वितीया । सज्जनोंके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले राजाने दुर्मद-मल-कलंकका प्रक्षालन करनेवाले मन्त्रणाघरमें मन्त्रियोंसे कहा, "हे ज्योतिषशास्त्रका अध्ययन करनेवाले संभिन्न ( मन्त्री ), बताओ-बताओ यह कन्या किसकी गृहिणी होगी। हे भव्य, तुम मेरा भवितव्य बताओ, तुमने अनेक दिव्य शरीरकी कान्तिसे चन्द्रमाको कान्तिहीन कर देनेवाले केवलज्ञानधारी ऋषिसमूह देखे हैं।" तब संभिन्न मन्त्रीने कहा "सुनाता हूँ, मैंने बहुत पहले संजय नामक अवधिज्ञानी मुनिसे पूछा था। (और उन्होंने कहा था), दक्षिण भरतक्षेत्रके सुन्दर देशमें जिसमें कि गृहशिखरोंसे सूर्यमण्डल आलिंगित है, घत्ता-पोदनपुर नगरमें राजा है, जिसका यश देवोंके द्वारा गाया जाता है। सम्यक्त्वका पालन करनेवाला जो जिननयको स्वीकार करता है ॥६॥ ७ प्राचीन समयमें पुरुदेवके दिग्गजगामी विश्वस्वामो (ऋषभदेव) का जो बाहुबलिदेव पुत्र था, जिसके द्वारा भरतदेव अपने भुजदण्डोंके द्वारा घुमा दिया गया था, और जो मोक्षगामी हुए थे, उसीकी पुरुष परम्परामें उत्पन्न प्रजापतिके नामसे विख्यात राजा है। जयवती उसकी बड़ी पत्नी है और दूसरी प्राणप्यारी मृगावती है । उन दोनोंसे, अपने प्रबल बाहुओंसे मन्दराचल ५. A णवर पराइय। ६. A णिसुणि जोइससुय; P णिसुणि जोइयसुय । ७. A णित्तेयई। ८. A धरियरिसि । ९. AP पुच्छिउ । ७.१ AP°सामिउ । २. A जइवय । ३. AP मिगावइ पाण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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