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________________ -५१. ४. १४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-जो पयसंताउ पलयसिहि व्व पलित्तउ ।। सो णिहँउ मयारि लोहियसलिले सित्तउ ॥३॥ करतलप्पचूरियदुग्घोट्टइ णियबलु कसिवि सीहकसवट्टइ। सुरसीमंतिणिकामुक्कोयणु लहिवि विजयलच्छिहि अवलोयणु । आया ते तं पुणरवि पोयणु णं ससहर दिणयर गयणंगणु । पयहिं पडतैवऊहिय ताएं दोणि मेह गं संझाराएं । पुणु आउच्छिउ दाणववइरिउँ किह केसरिकिसोरु पई मारिउ । तं णिसुणेवि तेण अवगणिउं णाविउं सीसु ण अप्पउ वण्णिउ । गरुयउ सगुणपसंसइ लज्जइ ऊणउ गुणथुइमइरइ मज्जइ। एंव ताहं बुहुसंपयसारा जंति दियह सुमणोरहगारा। तांवेकहिं दिणि परमणहारउ कंचणवेत्तपाणि पडिहारउ । कहइ गरिंदहु विणु आयासे ___ आयउ एक्कु पुरिसु आयासे ।। कंठयकडयमउडकुंडलघरु ___ण वियाणमि किं सुरु किं णहयरु । वारवार महुं वयणु णिरिक्खइ तुह कर्मकमलालोयणु कंखइ । घत्ता-जइ अवसरु अत्थि ता सो पइसारिजइ ॥ __ 'जं भासइ किं पि तं णरेस णिसुणिज्जइ ।।४।। घत्ता-प्रजाका सन्तापकारी जो प्रलयकी अग्निकी तरह प्रज्वलित था वह मारा गया सिंह रक्तरूपी जलसे सिक्त हो उठा ॥३॥ हथेलीके प्रहारसे हाथीके चूर कर लेनेपर, सिंहरूपी कसौटीपर अपना बल कसकर, देवबालाओंको कामोत्कण्ठा उत्पन्न करनेवाला विजयलक्ष्मीका उत्पन्न कटाक्ष प्राप्त कर वे दोनों पोदनपर नगर आ गये, मानो आकाशमें सूर्य और चन्द्रमा आ गये हों। पैरोंपर गिरते हुए उन दोनोंका पिताने आलिंगन किया, मानो सन्ध्यारागने मेघका आलिंगन किया हो। फिर उसने दानवराजके शत्रुसे पूछा कि तुमने सिंहके बच्चेको किस प्रकार मारा। यह सुनकर उसने उसकी उपेक्षा की, उसने सिर झुका दिया परन्तु अपना वर्णन नहीं किया । महान् या भारी आदमी अपनी गुण-प्रशंसासे लज्जित होता है, छोटा आदमी गुणस्तुतिको मदिरासे मतवाला हो जाता है। इस प्रकार प्रचुर सम्पत्तिसे श्रेष्ठ तथा सुन्दर मनोरथोंसे परिपूर्ण उनके दिन बीतने लगे। इतने में एक दिन दूसरेके मनका हरण करनेवाला हाथमें स्वर्णदण्ड लिये हुए प्रतिहारी राजासे कहता है कि बिना किसी आयासके एक आदमी आकाशमागंसे आया है। कण्ठा-कटक मुकूट और कुण्डल धारण किये हुए है, में नहीं जानता कि कोई नभचर है या देव । बार-बार मेरा मुख देखता है, और तुम्हारे चरणकमलको देखनेकी इच्छा करता है। ___ घत्ता-यदि अवसर हो तो उसे प्रवेश दिया जाये, और वह जो कुछ भी कहता है, हे नरेश, उसे सुना जाये ॥४॥ ८. AP णिहय । ४. १. A°दुघोट्टह। २. A सजयलच्छिहि । ३. A पडत विजोहिय; P पडंत विगूहिय; T अवगूहिय ___ आलिङ्गितौ । ४. AP°वेरिउ । ५. A पसंसण लज्जइ । ६. करकमला । ७. P तो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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