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________________ १९८ महापुराण [५१. २. ११पेसिउ जणणे चल्लिउ हलहरु ते सहुं चलिउ भाइ दामोयरु। णरकवालकंकालणिरंतर पत्ता केसरिगिरिकुहरंतरु । घत्ता-भडरोलहु सीह कुंदच्छवि उद्धाइउ ।। __ भाइहिं आवंतु णं कयंतजसु जोईये ।।२।। तिक्खणक्खणिक्खवियमयगलो पयविलग्गमुत्ताहलुजलो। रत्तसित्तकेसरसडालओ सिसुमियंकदाढाकरालओ। महिसमणुयपलकवलभोयणो सिहिफुलिंगपिंगलविलोयणो । कुडिललुलियलंगूलचिंधओ णासगहियपडिसुहडगंधओ। कंठरावणिहलियदिक्करी एरिसो सरोसेण केसरी। बहुबलक्खमियवीरविक्कम जांव देह किर सीरिणो कर्म । तांव तेण लहुएण भाइणा लोयजीवदाणेकदाइणा। विसतमालकालिंदिकंतिणों करेंजुवं पि वामेण पाणिणा। मयंवइस्स धरियं बला बलं बैलिविरोहिणो कस्स मंगलं । १० उच्छलंतदंतावलीसियं । दाहिणेण हत्थेण णिहयं । ताडिओ मुहे पाडिओ हरी संसिओ महीसेहिं सो हरी। माहवेण कयणिवविदोहेओ दड्ढदेहिदेहघिवो हँओ। आज मैं सिंहका प्रलय देखूगा।" पिताके द्वारा प्रेषित बलभद्र चला, उसके साथ भाई दामोदर चला । मनुष्योंके कपाल और हड्डियोंसे परिपूर्ण, सिंह की पर्वत गुफामें वे लोग पहुंचे। घत्ता-स्वर्णके समान कान्तिवाला सिंह योद्धाओंके हल्लेसे दौड़ा। दोनों भाइयोंने उसे आते हुए यम-भय की तरह देखा ||२|| जिसने अपने तीखे नखोंसे मदगजोंको आहत किया है, जो झरते हुए मोतियोंसे उज्ज्वल है, जो लाल और श्वेत अयालसे युक्त है, बालचन्द्रके समान दाढ़ोंसे जो भयंकर है, महिष और मनुष्योंके मांसका जिसका भोजन है, आगके स्फुलिंगके समान जिसके नेत्र पीले हैं, जो टेढ़ी और चंचल पूंछको पताकावाला है, जो प्रतिसुभट (शत्रु ) की गन्ध अपनी नाकसे ग्रहण करनेवाला है, अपने कण्ठके शब्दसे जिसने दिग्गजका शब्द नष्ट कर दिया है, इस प्रकारका वह सिंह क्रोधपूर्वक बहुबलसे वीरोंके पराक्रमको आक्रान्त करनेवाला जबतक श्रीबलभद्रके ऊपर पैर दे तबतक लोक जीवनदान में एक मात्र दानी तथा विष तमाल और यमुनाके समान कान्तिवाले उस छोटे भाईने उस सिंहके दोनों पैर और अयाल बलपूर्वक पकड़ लिये । बलवानसे विरोध करनेवाले किसका भला हुआ है ? उछलती हुई दन्तावलीकी सफेदीको उसने दायें हाथसे दलित कर दिया। मुखमें आहत किया। सिंह पीड़ित हो उठा। राजाओंने वासुदेवकी प्रशंसा की। इस प्रकार माधव, ने, जिसने राजासे विद्रोह किया है ऐसे दग्ध देहीके देह स्वरूप उस वृक्षको आहत कर दिया। ११. A कयंतजमु; P कयंतु जसु । १२. P जोविउ । ३. १. AP बहुबलक्कमियं । २. AP add after this : बाहुदंडबलतुलिय (A तुडिय ) दंतिणा, कररुहंसुपविरइयसुवलयं, वामएण चल (A वल) चरणजुयलयं, सुहडसंगरुन्बूढमाणिणा । ३. AP करजुयं । ४. A मइवइस्स । ५. AP बलविरोहिणो। ६. AP विदोहओ । ७. A हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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