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________________ १९२ महापुराण [५०.८.७लक्खणणंदणु हयसिरिविलासु थिउ महुरहि जाइवि कयणिवासु । अणवरयबुद्धिसंधियमणेण जीवइ कासु वि मंतित्तणेण । घत्ता-एत्थु ण किज्जइ दप्पु लच्छि ण कासु वि सासँय ॥ जे गय गयखंघेहिं ते पुणु पायहिं गये ॥८॥ मुणि विस्सणंदि ता तहिं जि कालि मज्झण्हवेलि खरकिरणजालि । कयपक्खमासदीहोववासु कंकालसेसु गयरुहिरमासु । तं पुरवरु सो चरियहि पइट्ट अहिणवपसूयगिट्ठिइ णिहट्छ । णिट्ठाणिट्ठिउ जइवरवरिट्ट णिवडंतु तेण पिसुणेण दिव। वेसासउहयलि परिट्ठिएण ___ बहुजम्मणमरणुक्कंठिएण। उवहसिउ साहु पत्थिवचरेण पई रुक्खे खंभ भग्गा करेण । चिरु एंवहिं गाइविह ट्टियंगु । पडिओ सि विहंडियमाणसिंगु । णिग्गुण णिग्घिण दुजण सगाव सि मज्झ पावेण पाव । पत्ता-तं णिसुणिवि सवणेणे बद्धउ रोसणियाणउं । आगामिणि भवि तुज्झु हसियहु करमि समाणउं ।।९।। नष्ट हो चुका है श्रोविलास जिसका ऐसा लक्ष्मणाका पुत्र मथुरा में घर बनाकर रहने लगा। जिसमें अनवरत बुद्धिके सन्धानमें मन रहता है, ऐसा किसीका मन्त्रित्व करते हुए वह जीवित रहता है । घत्ता-इस संसारमें घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी किसीके पास शाश्वत नहीं रहती। जो कभी हाथोके कन्धों पर चलते हैं, वे फिर पैरों चलते हैं ॥८॥ जिन्होंने एक पखवाड़ेका लम्बा उपवास किया है, जो कंकालशेष हैं, जिनका रुधिर और मांस जा चुका है ऐसे मुनि विश्वनन्दो, उसी समय सूर्यको प्रखर किरणोंसे युक्त मध्याह्न वेलामें उस नगरमें चर्याके लिए प्रविष्ट हुए। उन्हें नयो प्रसूतवतो गायने गिरा दिया। तपस्यासे क्षीण उन मुनिवरको वेश्याके सौधतलपर बैठे हुए उस दुष्टने गिरते हुए देखा । अनेक जन्म और मरणोंके लिए उत्सुक उसने साधुका उपहास किया कि भूतकालमें राजाके रूप में तुमने हाथसे वृक्ष और खम्भोंको नष्ट किया था। इस समय गायके द्वारा विखण्डित शरीर और खण्डित गर्वशिखर तुम पड़े हुए हो । हे निर्गुण, निपिन, दुर्जन, सगर्व पाप, तुम मेरे पापसे नष्ट हुए हो। घत्ता-यह सुनकर श्रमणने क्रोधसे यह निदान किया कि आगामी भवमें मैं तुम्हारी हंसीका समान फल बताऊँगा ||९|| ३. A णंदण। ४. P सासया। ५. A P ते पुणुरवि । ६. P गया । ९.१. AP णिहिछ । २. रंक खंभ । ३. AP समणेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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