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________________ -५०. ११. ४] महाकवि पुष्पदन्त विरचित १९३ १० कयपञ्चक्खाणपयासणेण तांवहिं वि मरिवि संणासणेण । जहिं तायभाउ जायउ अदीणु एहु वि दूसहतवचरणखीणु । तहिं देहमइ कप्पि मणोहिरामि दहछहजलणिहिबद्धाउधामि । उप्पण्णउ सल्लेहियंतरंगु कम्मेण ण किज्जइ कासु भंगु । ते बिणि वि सुरवर बद्धणेह ते बिण्णि वि लायण्णंबुमेह । ते बिगिण वि णिच्चु जि सह वसंति ते बिणि वि तारतुसारकंति । ते बिणि विगं तिव्वंसजोय ते बिणि वि कयकीलाविणोय । ते बिणि वि दिवि अच्छंति जांव ऍत्तहि वि अवरु संभवइ तांव । णिवेएं लइउ विसाहणंदि जिणतवतावे तावेवि बोंदि । माणिक्कमऊहोहामियकि संभूयउ सो वि महंतसुकि । घत्ता-एयह दोहं वि ताहं देवहं वियलियह रिसइं॥ थकउ आउपमाणु जइयहुँ कइवयवरिसइं ॥१०॥ तइयहं वेयड्डारूढियाहि अलयाणयरिहि पहु मोरगीउ देव वि रणरंगि तसंति जासु जो चिरु विसाहणंदि त्ति भणिउ विज्जोहर उत्तरसेढियाहि । थिरथोरबाहु सद्लगीउ । णीलंजणपह महएवि तासु । सो ताइ पुत्तु हरिगीउ जणिउ । १० प्रत्याख्यानका प्रकाशन करनेवाले संन्याससे मृत्युको प्राप्त होकर, जहां उसका अदीन चाचा उत्पन्न हुआ था, असह्य तपश्चरणसे क्षीण वह भी शल्यको अपने मनमें धारण कर सोलह सागर आयु प्रमाणवाले सुन्दर सोलहवें स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। कर्मके द्वारा किसका नाश नहीं किया जाता। वे दोनों ही देव एक दूसरेके प्रति स्नेहसे प्रतिबद्ध थे। वे दोनों ही लावण्यरूपी जलके मेघ थे। वे दोनों ही प्रतिदिन साथ रहते थे। वे दोनों ही स्वच्छ तुषारकी तरह कान्तिवाले थे। वे दोनों ही सूर्य-चन्द्रमाके समान थे। वे दोनों ही क्रीड़ा विनोद करनेवाले थे। वे दोनों जबतक स्वर्गमें थे, यहाँ भी तबतक दूसरी घटना हो गयी। विशाखनन्दोको वैराग्य हो गया। वह भी जिनवरके तपतापसे तपकर माणिक्यको किरणोंके समूहसे सूर्यको तिरस्कृत करनेवाले महाशुक्र स्वर्गमें देव हुआ। घत्ता-इतनेमें इन दोनों देवोंका भी विगलित है हर्ष जिनमें ऐसे कई वर्षोंका आयु प्रमाण रह गया ॥१०॥ ११ विजया नामसे प्रसिद्ध विद्याधरोंकी उत्तरश्रेणिको अलकापुरी नगरीमें स्थिर और स्थूल बाहु तथा सिंहके समान गरदनवाला मयूरग्रोव नामका राजा हुआ। जिससे युदमें देव भी त्रस्त रहते हैं, ऐसे उसकी नीलांजन प्रभा नामकी महादेवी थी। जो पहले विशाखनन्दी कहा गया था, १०. १. AP दहमि कप्पि सुमणों । २. A सल्लहयंतरंगु । ३. AP एत्तह वि । ११.१. P वेज्जाहर। २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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