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________________ १४८ ५ १० सुरवरकर यलपयहूं तूरइं वि वि भावे तित्थं करु feod दुगुल्लयाई परिप्पिणु सुमइहि रज्जु समप्पिवि राणउ गड पडतणाणाखयरामर मायसिरि मासि सिसिरहु भरि कुडिलकेस णिक्कुडिलें लुंचिवि जाइवि अमर पवरमयरालइ छट्टु वासु पयासु करेपिणु घत्ता - वित्थारियतवसिहि सिहं उझियर इसकपर्यं अवरहिं वासरि संतकसायड सइयरु मुणिभिक्खहि दुक्क उ तहु तहि उप्पण्णउं अच्छेरउ महापुराण १२ खीर महणवि भरियई खीरई । घणवा घणेण णं महिहरु । परम सिद्धसंतहि णवेष्पिणु । सूरप्पहसिवियहि आसीणउ । वियसि पुष्कर पुप्फवणं तरि । सिर्यैपाडिवर वरुणदिसि दिणयरि । लिय ते तियसिंदें अंचिवि । जयकारिउ विज्जाहरमालइ । थिउ नृवसैहसँ सहुं तउ लेपिणु । ससरीरे वि हु णिप्पिहं ॥ पडिवण्णं जिणकप्पयं ॥ १२ ॥ १३ हासकासजैसस सिसुच्छायउ । पुप्फमित्तरायडु घरि थक्कउ । पंचपयारु मणोरहगारउ । Jain Education International [ ४७. १२.१ १२ देववरोंके हाथोंसे नगाड़े बज उठे । क्षीर समुद्रसे जल भरा जाने लगा । इन्द्रने नमन किया, तीर्थंकरका भावसे अभिषेक किया, मानो मेघने महीधरका अभिषेक किया हो । दिवा वस्त्र पहनाकर, परम सिद्ध सन्ततिको प्रणाम कर, सुमतिको राज्य समर्पित कर राजा सूर्यप्रभा शित्रिकामें बैठ गये । नृत्य करते हुए नाना विद्याधर और देव विकसित पुष्पोंसे युक्त पुष्पवन में पहुँचे । वहाँ मार्गशीर्ष शुक्लपक्षको प्रतिपदा के दिन, सूर्यके पश्चिम दिशा में पहुँचनेपर अपने घुँघराले बालों को उन्होंने निष्कपट भावोंसे उखाड़ डाला । इन्द्रने पूजा कर उन्हें क्षीरसागर में फेंक दिया। विद्याधर समूहने जय-जयकार किया। छठा उपवास कर, एक हजार राजाओंके साथ तप ग्रहण कर स्थित हो गये । घत्ता - जिसमें तपरूपी अग्नि विस्तारित की गयी है, जो अपने ही शरीर में निष्प्रभ है, जिसमें रतिकी संरचनाका परित्याग कर दिया गया है, ऐसे जिनाचरणको उन्होंने स्वीकार कर लिया ||१२|| १३ एक दूसरे दिन हास्य, काश, यश और चन्द्रमाके समान कान्तिवाले शान्तकषाय वह शैलनगर में मुनिचर्या के लिए पहुंचे। वहाँ पुष्यमित्र राजाके घर ठहर गये। वहां उसे पाँच सुन्दर १२. १. A महणवं । २. APT° दुगूलयाई । ३. A मायसिरमासि; P मागसिरि मासि । ४. A पडिवए; P पडिवाए । ५. P णिकुडिल्लें । ६. AP णिवसह सें । १३. १. Pस । २. AP सयलणयरु । ३. P मणोहरं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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