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________________ - ४७.११.११ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता - माणंतहु सिरियंगेहूं अट्ठवीसेपुंव्वंगई ॥ पुहुं पुणु सविलास पण्णासेव सेहोसई ॥१०॥ तेत्थु तासु वोलीणई जइयहुं तं जोइवि जिणणाहु वियक्कइ जणण मरणपरिट्टण लक्खणु जं जं कोई वि णयणहिं दीसइ afro सog भणु कह रद्द कीरइ वइसारु इंधणतणपवणें भोएं इंदियतित्ति ण पूरइ इय चिंतंतु णाहु संभाषिउ चारु चारु पईं जिणवर जाणिउं धत्ता-ता धयवीईराइयं पुंडरीयमालाधरं ११ उक्क पडती दिट्ठी तइयहुं । कहि कोइ वि चुक्कइ । उतिजगु परिणव पॅडिक्खणु । उक्का इव तं तं खणि णासइ । तो विचित्तु विसयासइ हीरइ । ण समइ कंडु णक्खकंडुयेणें । बइ दुट्ठ तिट्ठ मइ जूरइ । अमरमुणीसरेहिं बोल्लाविड । सासयवित्तिहिं हियवर आणिउं । . विलपत्तपच्छाइयं ॥ सोहई गयणंगणसरं ॥११॥ Jain Education International १४७ पत्ता - राज्यश्रीके अंगों को मानते हुए उनके पचास हजार पूर्वं और अट्ठाईस पूर्वांग समय विलासपूर्वक बीत गया || १० || १० ११ जब उनका इतना समय बीत गया, तो उन्होंने एक उल्काको गिरते हुए देखा । उसे देखकर जिननाथ विचार करते हैं-यमसे युद्ध करते हुए कोई नहीं बचता, जनन-मरण और परिवर्तनके लक्षणवाला यह त्रिलोक प्रतिक्षण बदलता रहता है । नेत्रोंसे जो-जो कुछ भी दिखाई देता है, उल्काके समान वह एक क्षण में नष्ट हो जाता है, जहां सब कुछ अस्थिर है, बताओ वहाँ कहाँ रति की जाये। फिर हृदय विषयको आशाके द्वारा अपहृत किया जाता है। आग ईन्धनस्वरूप शरीर और हवासे, और खाज नाखूनोंसे खुजलानेसे नष्ट नहीं होती । भोगसे इन्द्रिय तृप्ति नहीं होती । दुष्ट तृष्णा बढ़ती है और मति पीड़ित होती है । इस प्रकार विचार करते हुए स्वामीकी सम्भावना कर अमरमुनीश्वरों (लौकान्तिक देवों) ने आकर कहा - हे जिनवर ! आपने सुन्दर जाना और शाश्वत वृत्तियोंसे अपनेको अनुशासित किया । घत्ता -- तब इतने में ध्वजरूपी तरंगोंसे शोभित, विपुल पात्रों ( पत्तों वाहनों) से आच्छादित पुण्डरीकों ( कमलों और छत्रों ) की माला धारण करनेवाला आकाश प्रांगणरूपी सरोवर शोभित हो उठा ||११|| ९. A सिरिअंगयं । १०. A पुग्वंगयं । ११. A सहस्सई ११. १. A कालहू कालि ण वि को चुक्कई । २. Aमर परि । ३. A परिक्खणु । ४. A कायमि यहं । ५. A कंडमणें । ६. A वोलाविउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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