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________________ १४४ १० १५ धत्ता - इय वर्रसिविणयमालियं पइणो तीए सिट्ठेयं दयाभावजुत्तो हले होहि दीसो परस्सोवयारी तओ तम्मि काले तिलोयस्स पुज्जा मई कंति बुद्धी ससिंगारभारा गुणुत्तालभावा तुलाको डिपाया दिही दीहरच्छी पवण्णा णिवासं कया गभसुद्धी सो पहि रिऊमासमे अमंदो णिवंदो Jain Education International ७ घत्ता - फग्गुणमासे पत्तए णवमीदियहि पवित्तए महापुराण जयरामाइ णिहालियं ॥ ते वि फलमुट्ठियं ॥७॥ 'तुमं चारुपुत्तो । अणीसो मुणीसो । जिणो णिज्जियारी । महातू रंगेले | सँई का वि लज्जा । सिरी संति सिद्धी । पघोलंतहारा । सकंचीकलावा | विणंगराया | परा का वि लच्छी । जिणंबाह पासं । इमोहिं महिद्धी । हिरणं पट्टो | घरे समेरं । ओ प्राणदो | पक्खे ससियरदित्तए || देव मूलणखत ||८| घत्ता - इस प्रकार जयरामाने स्वप्नमालिका देखी। उसने पति से कहा। उन्होंने भी उसके फलका कथन किया ||७|| [ ४७.७.७ कि तुम्हारा दयासे युक्त सुन्दर पुत्र होगा। हे हला, अनीश, मुनीश, दूसरोंका कल्याणकारी, शत्रुओं का नाश करनेवाले जिन; तब उस समय कि जब महातुर्य बज रहा था, त्रिलोककी पूजनीय सती कोई लज्जा, (हो), कान्ति, मति ( बुद्धि ), सिद्ध होती हुई श्री, शृंगारके भारसे दबी हुई, हारको आन्दोलित करती हुई लक्ष्मी, गुणोंसे ऊंचे भाववाली कांची कलापसे युक्त, पैरोंसे घुंघरू पहने हुए अंगराग विकीर्ण करती हुई लम्बी आंखोंवाली कोई श्रेष्ठ लक्ष्मी जिननाथके निवासस्थान पर पहुँचीं । इनके द्वारा महान् ऋद्धिवाली गर्भशुद्धि की गयी। छह माहकी अपनी मर्यादा तक कुबेरने प्रसन्नता से धनको वर्षा की । अमन्द मनवन्दनीय प्राणत इन्द्र- च्युत हुआ और । धत्ता - फागुन माह के कृष्णपक्षको नवमीके दिन मूलनक्षत्र में ||८|| ८. A वरि । ९. A सिट्टियं । १०. A दिट्टियं । ८. १. AP तुहं । २. तूरराले । ३. A सुई कावि; P सयं कावि । ४. P जिणंबाय । ५. P सुबण्णेण वुट्टो । ६. A रमंतो समेरं । ७. P णिमंदो । ८. AP पाणइंदो । ९. A देउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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