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________________ -४७.७.६] महाकवि पुष्पदन्त विरचित कक्केयणकुड्यलइ पेच्छिवि मुंज मुंज णियभासइ पुच्छिवि । दिण्णउ मुहबिबाहरतंबइ सिसुणा कूरकवलु पंडिबिंबइ। अण्णु वि रंगंतउ सुत्तट्ठिउ थणइ थण्णरसगहणुकंठिउ । मणिमहियलगयतणु पेडिमुल्लउ दोमायउं चिंतइ डिंभुल्लउ । जं घरसिहराहयणहभायउ कणयघडिउ पुरु पीयलछायउ । णिच्चु जि अमुणियसंझारायउ सुरहिसुसीयलँदाहिणवायउ । घत्ता-तहिं रयणंसुकरालइ सोवंती सयणालइ॥ अम्माएवि महासइ पेच्छइ सिविणयमंतइ ॥६॥ णायं णाइल्लं णायारिं णाणाफुल्लं मालाजमलं जायेयजुम्म सिरिणिवजुम्म पालंतुग्र्गेयवेलावारं पीढं चामीयरसेहीरं दीहमऊहं रयणसमूह णारायणियं णरमणहारिं। णिसियरयं णेसरयं विमलं । पोमसरं पोमासियपोमं । पारं पंडुरपाणियफारं। णाइहरं णाइंदागारं। णिद्धं णिचूमं हुयवाहं । दीप्तिको निन्दा करती है । नीलरत्नकी भित्तिको देखकर अपनी भाषा (शिशुभाषा ) में 'खाओ खाओं' पूछकर बच्चेने मुखके बिम्बाधरसे ताम्र प्रतिबिम्बको भातका कोर दे दिया । एक और सोकर उठा हुआ बालक, खेलते-खेलते मां का दूध पीनेकी उत्कण्ठासे चिल्लाता है। लेकिन मणि-महीतलमें प्रतिबिम्बित तनुको देखकर भूल गया, और बालक सोचता है कि दो माताएं हैं। जो अपने गृहशिखरोंसे आकाशभागको आहत करता है, स्वर्णनिर्मित और पीली कान्तिवाला है, जो प्रतिदिन सन्ध्यारागको नहीं जानता, और जिसमें सुरभित शीतल और दक्षिण पवन बहता है। पत्ता-ऐसे उस नगरमें रत्नकिरणोंसे मिश्रित शयनतलमें सोती हुई महासती अम्बादेवी स्वप्न-परम्पराको देखती है ।।६।। गज, बैल, मनुष्योंके लिए सुन्दर लक्ष्मी, नाना पुष्पोंकी दो मालाएं, विमल चन्द्रमा और सर्य, मत्स्ययग, लक्ष्मीसे यक्त कम्भयगल, लक्ष्मीसे अधिष्ठित कमलोंका सरोवर-जिसका तटसमूह बांधोंके बाहर निकला हुआ है और जिसके पानीका विस्तार सफेद है, ऐसा समुद्र; सोनेके सिंहोंका पोठ ( सिंहासन ); स्वर्गविमान और नागभवन, लम्बो किरणोंवाला रत्नसमूह, स्निग्ध और निर्धूम अग्नि। ४. P परिबिंबइ । ५. A मणिमहिगयतणु णिरु पडिभुल्लउ; P मणिमहिगयतणु परिबिंबुल्लर । ६. AP सुसीयलु । ७. AP रम्माए वि । ७. १. P णायल्लं । २. A°जुवलं। ३. AT जलयरजुम्मं । ४. AP पालतुंगयवेलावारं ( P धारं )। ५. Pणायहरं। ६. A adds after this : ऊइयपंचवीयं एवहं। ७. A adds after this: जालामालाडियदिसोहं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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