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________________ -४७. ९. १५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित १४५ जिणो णारिदेहे थिओ दिव्वणाणो सुरिंदाण वंदेहिं वंदिज्जमाणो । णिहीकुंभहत्था पणच्चंति जक्खा वरिट्ठा सुवण्णं दहढेव पक्खा। पमोत्तूण संसारवित्थारदुग्गं पवण्णम्मि चंदप्पहे मोक्खमग्गं । समुदाण कोडीण सीरीसमाणं सुसुण्णं गयं एत्तियं कालमाणं । तओ मग्गसीसे णिसीसंसुसेएं पहिल्ले.दिणे जायओ जायसेएँ । जिणिंदस्स जम्मे जियाराइवग्गो ससको असेसो वि सोहम्मसग्गो । ण सामाइ खे खीणपावो महप्पो विमाणेहिं जाणेहिं ईसाणकप्पो । साईकुमारो स माहिंदणामो विलंबंतसोहंतमंदारदामो। समं बंभणाहेण बंभुत्तरेसो णहुड्डीणगिवाणसोहाविसेसो। चलो चल्लिओ लंतवो लच्छिधामो असतॄण काविट्ठवो तुट्ठिकामो। ससुक्को महासुकदेवग्गगामी सयारो सहारो सहस्सारसामी। समुद्धाइओ आणओ प्राणइंदो जगुद्धारणो आरणो अच्चुइंदो। ससी वासरीसो रहुब्बद्धकेऊ बुहो अंगिरारो सणी राहु केऊ । दियंतं गयाणंदभेरीणिणाया पुरि 'प्राइया सामराणं णिहाया। णिवो वंदिओ तेहिं कार्कदिवालो' करे ढोइओ कित्तिमो को वि बालो। १५ देवेन्द्रोंके समूहके द्वारा वन्दनीय देव जिन नारीदेहमें आकर स्थित हए। निधिकलश अपने हाथमें लेकर यक्ष नृत्य किया और अठारह पक्षों तक धनकी वर्षा की। संसारके विस्तार दुर्गको छोड़कर चन्द्रप्रभ स्वामीके मोक्षमार्गमें प्रवृत्त होनेपर, नब्बे करोड़ सागर पर्यन्त समय बीतनेपर मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी प्रतिपदाके दिन जिनेन्द्रके जन्ममें, शत्रुवर्गका विजेता, इन्द्र सहित समस्त सौधर्म स्वर्ग आकाशमें नहीं समा सका। निष्पाप और माहात्म्यवाला ईशान स्वर्ग विमानों और यानोंसे, जो लटकती हुई मन्दारपुष्प मालाओंसे शोभित है, ऐसे सानत्कुमार और महेन्द्र स्वर्ग, ब्रह्म स्वर्गके इन्द्रके साथ ब्रह्मोत्तर स्वर्गका इन्द्र (कि जिसकी आकाशमें उड़ते हुए देवोंसे शोभा विशेष है ) लक्ष्मीसे युक्त चंचल लान्तव स्वर्ग तथा बिना किसी कपट भावसे सन्तुष्ट काम कापिष्ट स्वर्ग चल पड़ा । शुक्र वर्गके साथ महाशुक्र स्वर्गका अग्रगामी देव (इन्द्र), सतार स्वर्ग और हारसहित सहस्रार स्वर्गका स्वामी आनत और प्राणत स्वर्ग दौड़ पड़ा, विश्वको धारण करनेवाला आरण और अच्युत स्वर्ग भी। चन्द्रमा, सूर्य, जिसके रथ पर पताका बंधी हुई है ऐसा बुध, बृहस्पति, शनि, राहु और केतु आये । आनन्दभेरीके निनाद दिशाओंमें फैल गये । लोकपालोंके समूह उस नगरीमें पहुंचे। उन्होंने काकन्दी नगरका पालन करनेवाले उस राजाको नमस्कार ९.१. AP ससुण्णं । २. A सुसेओ। ३. A जायसे ओ। ४. AP संमाइ। ५. P सणाईकुमारो। ६. AP विलोलंतसोहंत । ७. AP'देवक्क । ८. AP पाणइंदो। ९.P वासरेसो। १०.AP पाया। ११. AP काकिदिवालो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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