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________________ ५ १० सुविहिं सुविहिपेयासणं भुवणणलिणवणदिणयरं होखित्ततारं सुहामो सासं पदिट्ठ दिसासुं अरीणं अगम्मं Jain Education International हयं जेण कम्मं गयासाविहाणं सुरिंदहिधीरो पयोगहीरो दहीगाइगो कारुण्णभावो कुसिद्धंतवारो जो मोहभंतो संधि ४७ सयमहवंदियसासणं ॥ वंदे णवमं जिणवरं ॥ ध्रुवकं ॥ १ सवण्णेण तारं । सया जस्स सासं । रिसिं रक्खियासुं । मोण गं मं । जगे जस्स कम्मं । णिहाणं विहाणं । सभत्ताण धीरो । अकंतंगहीरो । अमोहो विगोai | भाव । सुदितवारो । ण जम्मोहवतो । संधि ४७ सुविधिका प्रकाशन करनेवाले, इन्द्रके द्वारा जिनका शासन वन्दनीय है ऐसे भुवनरूपी कमलवनके लिए दिवाकर नौवें तीर्थंकर सुविधि ( पुष्पदन्त ) को में नमस्कार करता हूँ । १ जिन्होंने अपने नखोंसे आकाशके तारोंको तिरस्कृत कर दिया है, जो अपने वर्णंसे स्वच्छ हैं, जिनके श्वास सुख और आमोदमय हैं, जिनका मुख सदेव शोभामय है, जिन्होंने दिशामुखोंको उपदिष्ट किया है, जो प्राणियोंके प्राणोंकी रक्षा करनेवाले हैं, जिन्होंने शत्रुओंके लिए अगम्य भूमि और लक्ष्मी छोड़कर कर्मोंका नाश किया है, विश्वमें जिनका काम (नाम) है। जिनका विधान और धर्मोपदेश विधान फल की इच्छासे रहित है । जो सुमेरुपर्वतकी तरह गम्भीर हैं, जो अपने भक्तोंके लिए बुद्धि देते हैं, जो समुद्रकी तरह गम्भीर हैं, जो शरीरसे स्त्रीका त्याग कर देनेवाले महादेव हैं। जो धृतिरूपी गायकी रक्षा करनेवाले गोप (विष्णु) हैं। मोह और गवंसे रहित हैं; जो कारुण्य भावसे युक्त हैं, जो लोगोंको पदार्थका स्वरूप बतानेवाले हैं, खोटे सिद्धान्तोंका निवारण करनेवाले और अनन्त स्वरूपोंका अन्त देखनेवाले हैं। जो मोहसे भ्रान्त नहीं हैं और न जन्मके P gives, at the beginning of this Samdhi, the stanza: for which see note on page 45 A and K do not give it. १. १. PT सुविहियसासणं । २. P. वंदिवि । ३. A हुषिखत्ततारं । ४. A अगोवो । ५. P सुसिद्धंतपारो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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