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________________ -४७ २.८ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित मोयणं तं । जिणा पुप्फयं तं । दयाधम्मँछित्तं । मामो अनंतं जिणं पुप्फयंतं हत्थे छित्त सया जस्स सीलं पासे संतो महीदणमारो घत्ता - तहु वरचरियविसेसयं मेल्लह मोह विडंबणं दीवि खरंसुदीवि कुसुमियतरु पुव्वविदेहि तासु मंथरगड् णवलवंग पल्लवसुरहियजले खयरी सिणिघुसिणरसपीयल तडवरविडविपडियणोणाहल देहूँ णिलोल माणसूयर उल जिणपडिमा इव सार्वयसंगिण उत्तर तीर ताहि हयखलवइ बुहाणं सुसीलं । खणेण इसतो | कओ जेण मारो। Jain Education International आयण्णह महिमासयं ॥ अथिरं घर घरिणी धणं ॥ १ ॥ २ पुक्खरद्धि पुवामरमहिहरु । णीरगहिर सी सीयाणइ । मज्जमाण गज्जिरवर मर्येगल । गुरुतरंग घोलिरम हुलिह चल । कीलियमहिसं वंदहयणाहल | पक्खितुंडपत्रिइंडियसयदल | किं वणिज्जइ दिव्वतरंगिणि । अस्थि भूमि णामे पुक्खलवइ । १३९ १५ २० युक्त हैं, ऐसे रतिका मोचन करनेवाले अनन्त जिन पुष्पदन्तको में नमस्कार करता हूँ । जिन्होंने कामदेवको अपने हाथसे नहीं छुआ। जिनका शील सदैव दयाभावसे स्पृष्ट है और पण्डितोंके लिए सुशील (व्रतों) का प्रकाशन करनेवाला है। धरतीपर प्राणियोंको मृत्यु देनेवाले विद्यमान कामदेवको जिन्होंने एक क्षण में नष्ट बाणोंवाला बना दिया । ५ घत्ता - ऐसे उन पुष्पदन्तके सैकड़ों महिमावाले श्रेष्ठ चरित्र विशेषको सुनो। मोहकी विडम्बना अस्थिर घर-गृहिणी और घरको छोड़ो || १ || For Private & Personal Use Only २ सूर्यको तीव्र किरणोंसे दीप्त पुष्करार्ध द्वीपमें कुसुमित वृक्षोंवाला पूर्वं सुमेरुपर्वत है । उसके पूर्वविदेह में मन्थरगतिवाली जलसे गम्भीर शीतल शीतोदा नदी है। जिसका जल नवलवंगोंके पल्लवोंसे सुरभित है, जिसमें नहाते हुए और गर्जित शब्दवाले मैगल हाथी हैं, जो विद्याधरियोंके स्तनोंके केशररससे पीली है, जो बड़ी-बड़ी लहरोंपर व्याप्त भ्रमरोंसे चंचल है, जिसमें तटवर्ती वृक्षोंके नाना फल गिरे हुए हैं, जिसमें भैंससमूह, अश्व और भील क्रीड़ा कर रहे हैं, जिसमें शूकर-कुल कीचड़ से खेल रहा है, जिसमें पक्षिसमूहके द्वारा कमल खण्डित कर दिये गये हैं, जो जिन प्रतिमाके समान सावयसंगिनी (श्रावक संगिनी, श्वापद संगिनी) है, ऐसी उस दिव्य नदीका क्या वर्णन किया जाये । उसके उत्तर तटपर खल राजाओंका नाश करनेवाली पुष्कलावती नामकी भूमि है । ६. A छिण्णं । ७. छिण्णं । ८. A घरणी । o २. १. AP सीयल | २. A जले; P°जलु । ३. P गज्जियं । ४. A ° मयगले; P मयगलु । ५. A 'पलियं । ६. AP महिसविद । ७. A दहिणीलो ं । ८. सिंगिणि । ९. A उत्तरतीरे । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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