SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -४६. १३.१९ ] धूवोहधूमेण महुयररविलाई घल्लंति देविद जीहासहासेहि देवीउ णचंति 'विऊण तं तित्थु जिहे गुणकहाकारि सग्गं सलीलेण "ससिकं तितेण ૧૪ महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता - इये भरहखेत्तणरय दियहु जगचं दुज्जयचंदहु || किं १८ " णाणाविहोएणे' । पंजलिहिं फुल्लाई । वणंति णाद | विब्भमविलासेहिं । सिद्धं समश्चंति । सो सयलु सुरसत्थु । पत्तो पुलोमारि । करिणा मयालेण । रसंतेण । १५ धीरं Jain Education International पुप्फवंतु ह जडु करमि चंदप्पहहु जिणिदहु ||१३|| इय महापुराणे तिसट्टि महापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्पयंतविरइए महामन्वमरहाणुमणिए महाकवे चंदप्पणिष्वाणगमणं णाम छायाळीसमो परिच्छेओ समत्तो ॥ ४ ॥ ॥ चंदर्हचरियं समत्तं ॥ इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका चन्द्रप्रभ निर्वाणगमन नामक छियाकीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४६॥ १३७ प्रणाम करते हैं, उनके मुकुटसमूह प्रज्वलित होते हैं, दीपके समूह दिये जाते हैं, धूप समूहके धुएँ और विशिष्ट भोगोंके साथ देवेन्द्र अपने हाथोंकी अंजलियोंसे, भ्रमरके शब्दोंसे युक्त पुष्प बरसाते हैं । नागेन्द्र अपनी हजारों जीभोंसे स्तुति करते हैं, देवियां विभ्रम विलासों के साथ नृत्य करती हैं तथा देवकी समर्चा करती हैं। वह समस्त सुरसमूह उस तीर्थंकी वन्दना कर उसी प्रकार स्वर्गको गया जिस प्रकार इन्द्र लीलावाले मदालस चन्द्रकान्तिके समान दांतवाले धोरे-धीरे गरजते हुए हाथी के साथ स्वर्गं गया । १० घत्ता - जो यहाँ भरतक्षेत्र के लोगोंके लिए दिवस और विश्वरूपी कुमुदके लिए चन्द्र हैं ऐसे चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रके वर्णनमें जड़ कवि पुष्पदन्त क्या करे ? ॥१३॥ १५ For Private & Personal Use Only ९. A धूमोहणीलाउ । ११. AP णिग्गंति जालाउ । ११. AP add aftar this : णिरसियअणंगाई, उज्झंति. अंगाई | १२. AP णमिऊण तं वेत्थु । १३. AP जिणं । १४. A ससिकंतदंतेण । १५. A वीरं । १६. A इह । १७. AP भरहखेत्ति पर । १८. किम । १९. AP omit this line I १८ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy