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षट्चत्वारिंशत्तम पर्व
स्त्रीषु मायेति या वार्ता सत्यां तामद्य कर्वती। पतिमूच्छा स्वमूर्छाया: 'प्रत्ययीकृत्य मायया ॥११॥ पश्य कृत्रिमच्छत्तिभावनाव्यक्तसंवृतिः । सन्ततान्तःस्थितप्रौढप्रेमप्रेरितचेतना ॥१२॥ कन्यावतविलोपात्तगोत्रस्खलनदूषिता। पति रतिवक्त्वाऽयान्मूच्छी कुलदूषिणी ॥१३॥ इयं शीलवतीत्येनां निस्स्वनन् वर्णयत्ययम् । प्रायो रक्तस्य दोषोऽपि गुणवत प्रतिभासते ॥१४॥ प्रभावतीति सम्मह्य कितवः 'कोपिनोमिमाम् । प्रसिसादयिषुः शोकं तत्प्रीत्या विदधाति नः ॥१५॥ "एतान् सर्वास्तवालापान जयोऽवधिविलोचनः । विदित्वा सस्मितं पश्यन् प्रियायाः रमेरमाननम् ॥१६॥ कान्ते जन्मान्तरावाप्तं विश्वं वृत्तान्तमावयोः। व्यावण्येमां सभां तुष्टिकौतुकापहृतां कुरु ॥१७॥ इति प्राचोदयत साऽपि प्रिया तद्भाववेदिनी । कयां कययितु कृत्स्नां प्राक्रस्त कलभाषिणी ॥१८॥ इह जम्बूमति द्वीपे विदेहे प्राचि" पुष्कला-वती विषयमध्यस्था नगरी पुण्डरीकिणी ॥१६॥ तत्राभवत् प्रजापालः प्रजा राजा प्रपालयत् । फलं धर्मार्थकामानां स्वीकृत्य कृतिनां वरः ॥२०॥ कुबेरमित्रस्तस्यासीद् राजश्रेष्ठी "प्रतिष्ठितः। द्वात्रिंशद्धनवत्याद्या भार्यास्तस्य मनःप्रियाः॥२१॥
गहे तस्य समुत्तुङगे नानाभवनवेष्टिते । वसन् रतिवरो नाम्ना धीमान् पारावतोत्तमः ॥२२॥ उद्रेकसे परस्परमें इस प्रकार कहने लगीं ॥१०॥ देखो, यह सुलोचना मायाचारसे पतिकी मूर्छाको अपनी मूर्छाका कारण बनाकर 'स्त्रियोंमें माया रहती है' इस कहावतको कैसा सत्य सिद्ध कर रही है । और इस प्रकार जिसने कृत्रिम मूर्छाके द्वारा प्रकट हुई भावनाओंका साफ साफ संवरण कर लिया है, जिसकी चेतना सदासे हृदयमें बैठे हुए प्रौढ़ प्रेमसे प्रेरित हो रही है जो कन्याव्रतके भंग करने से प्राप्त हुए गोत्रस्खलन (भूलसे दूसरे पतिका नाम लेने) से दूषित है तथा कुलको दूषण लगानेवाली है ऐसी यह सुलोचना अपने पहलेके पतिको 'हे रतिवर' इस प्रकार कहकर बनावटी मूर्छाको प्राप्त हुई है ॥११-१३॥ यह जयकुमार इसे 'यह बड़ी शीलवती है, इस प्रकार कहता हुआ वर्णन करता है सो ठीक ही है क्योंकि रागी पुरुषको प्रायः दोष भी गुणके समान जान पड़ते हैं ।।१४।। 'हे प्रभावति' ऐसा कहकर मूच्छित हो, क्रोध करनेवाली इस सुलोचनाको प्रसन्न करनेकी इच्छा करता हुआ यह धूर्त कुमार उसके प्रेमसे ही हम लोगोंको शोक उत्पन्न कर रहा है ॥१५॥ अवधिज्ञानरूपी नेत्रको धारण करनेवाला जयकुमार उन लोगोंकी इन सब बातोंको जानकर मन्द हंसी के साथ साथ सुलोचनाके मुस्कुराते हुए मुखको देखता हुआ कहने लगा कि 'हे प्रिये ! तू हम दोनोंके पूर्वभवका सब वृत्तान्त कहकर इस सभाको संतुष्ट तथा कौतुकके वशीभूत कर !' यह सुनकर पतिके अभिप्रायको जाननेवाली और मधुर भाषण करनेवाली सुलोचनाने भी पूर्वभवकी सब कथा कहनी प्रारम्भ की ॥१६-१८॥
___इस जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्र में एक पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है जो कि पुष्कलावती देशक मध्यमें स्थित है। उस नगरीका राजा प्रजापाल था जो कि समस्त प्रजाका पालन करता हुआ धर्म, अर्थ तथा कामका फल स्वीकार कर सब पुण्यवानोंमें श्रेष्ठ था ॥१९-२०॥ उस राजाका कुबेरमित्र नामका एक प्रसिद्ध राजशेठ था और उसकी हृदयको प्रिय लगनेवाली धनवती आदि बत्तीस स्त्रियां थीं ॥२१॥ अनेक भवनोंसे घिरे हुए उस शेठके अत्यन्त ऊंचे महलमें एक रतिवर नामका कबूतर रहता था जो कि अतिशय बुद्धिमान् और सब कबूतरोंमें
१ कारणीकृत्य । 'प्रत्ययोऽधीनशपथज्ञानविज्ञानहेतुषु' इत्यभिधानात् । २ रतिवरेत्युक्तपुरुषे प्रवृद्धस्नेहेन प्रेरितमनसा । ३ अगच्छत् । ४ -त्येवं ल० । -त्येतां अ०, स०, इ०, प० । ५ निस्तनन् ट० । ब्रुवन् । ६ अनुरक्तस्य । ७ मूर्छा गत्वा । ८ धूर्तः । ६ प्रभावतीनामग्रहणात् कुपिताम् । १० प्रसादयितुमिच्छुः । ११ एनान् । १२ अवादीत् । १३ उपक्रान्तवती । १४ पूर्व विदेहे । १५ श्रीमानित्यर्थः ।
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