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________________ पट्चत्वारिंशत्तमं पर्व जयः प्रासादमव्यास्य 'दन्तावलगतो मुदा । यदृच्छयाऽन्यदालोक्य गच्छन्तौ खगदम्पती ॥१॥ हा मे प्रभावतीत्येतद् श्रालपन्नतिविह्वलः । रतिमेवाहितः सद्यः सहायीकृत्य मूर्च्छया ॥ २ ॥ तथा 'पारावतद्वन्द्वं 'तत्रैवालोक्य कामिनी । हा मे रतिवरेत्युक्त्वा साऽपि मूर्च्छामुपागता ॥३॥ 'दक्ष चेटीजनक्षिप्रकृतशीतक्रिया क्रमात् । सद्यः कुमुदिनीवाप प्रबोधं शीतवीधितेः ॥४॥ 'हिमचन्दन सम्मिश्र वारिभिर्मन्दमारुतैः । सोऽप्यमूच्छ दिशः पश्यन् मन्दमन्दतनुत्रपः ॥५॥ यूयं सर्वेऽपि सायन्तनाम्भोजानु कृताननाः । किमेतदिति तत्सर्वं जानानोऽपि स नागरः ॥६॥ कानुनयोपाय गत्रस्खलन दुःखिताम् । सुलोचनां समाश्वास्य स्मरन् जन्मान्तरप्रियाम् ॥७॥ कति कृत्वा तामेवालपयत्" स्थितः । वञ्चनावुञ्चवः १५ सर्वे प्रायः कान्तासु कामिनः ॥ ८ ॥ तयोर्जातरात्मीयवृत्तान्तस्मृत्यनन्तरम् । स्वर्गादनुगतो बोधस्तृतीयो" व्यक्तिमीयिवान् ॥६॥ द्विलोक्य सपत्न्योऽस्या" श्रीमती सशिवङकरा । पराश्च मत्सरोद्रेकादित्यन्योन्यं तदावु बन्" ॥१०॥ अथानन्तर किसी अन्य समय जयकुमार अपने महलकी छतपर आनन्दसे बैठा था कि इतने में ही अपनी 'इच्छानुसार जाते हुए विद्याधर दम्पती दिखे, उन्हें देखकर 'हा मेरी प्रभावती' इस प्रकार कहता हुआ वह बहुत ही बेचैन हुआ और मूर्च्छाकी सहायता पाकर शीघ्र ही प्रेमको प्राप्त हुआ । भावार्थ- पूर्वभवका स्मरण होनेसे मूच्छित हो गया ॥ १-२ ॥ इसी प्रकार सुलोचना भी उती स्थानपर कबूतरोंका युगल देखकर 'हा मेरे रतिवर' ऐसा कहकर मूर्च्छाको प्राप्त हो गई || ३ || जिस प्रकार चन्द्रमासे कुमुदिनी शीघ्र ही प्रबोधको प्राप्त हो जाती है - खिल उठती है उसी प्रकार चनुर दासी जनोंके द्वारा किये हुए शीतलोपचारके क्रमसे वह सुलोचना शीघ्र ही प्रबोधको प्राप्त हुई थी - मूर्च्छारहित हो गई थी ||४|| कपूर और चन्दन मिले हुए जलसे तथा मन्द मन्द वायुसे कुछ लज्जित हुआ और दिशाओंकी ओर देखता हुआ वह जयकुमार भी मूर्च्छारहित हुआ || ५ || यद्यपि वह चतुर जयकुमार सब कुछ समझता था तथापि पूछने लगा कि तुम लोगों के मुँह संध्याकालके कमलोंका अनुकरण क्यों कर रहे हैं ? अर्थात् कान्तिरहित क्यों हो रहे हैं ? ॥६॥ पतिके मुँहसे दूसरी स्त्रीका नाम निकल जाने के कारण दुखी हुई सुलोचनाको जयकुमारने अनेक प्रकारके अनुनय-विनय आदि आयों से समझाया तथा दूसरे जन्मकी प्रिया प्रभावती समझकर अपने मुँहका आकार छिपा वह उसी के साथ बातचीत करने लगा सो ठीक ही है क्योंकि सभी कामी पुरुष स्त्रियों के ठगने में अत्यन्त चतुर होते हैं ||७-८ ।। उन दोनोंके जन्मान्तर सम्बन्धी अपना समाचार स्मरण होने के बाद ही स्वर्ग पर्यायसे सम्बन्ध रखनेवाला अवधिज्ञान भी प्रकट हो गया ॥ ९ ॥ | यह सब देखकर श्रीमती शिवंकरा तथा और भी जो सुलोचनाकी सौतें थीं वे उस समय ईर्ष्या के १ शोभायै विन्यस्तकृत्रिमगज । दन्तावलमनो ल० । २ विद्याधरदम्पती । ३ प्रीतिम् । ४ प्राप्तः । स्वीकृतो वा । ५ कपोत । ६ सौधाग्रे । ७ चतुर । ८ कर्पूर । ६ ईषल्लज्जावान् । १० अस्तमयकाल । ११ निपुणः । १२ प्रभावतीति नामान्तरग्रहण, सुलोचनाया अग्रे प्रभावतीति अन्यस्त्रीनामग्रहण । १३ जन्मन्तरप्रियास्मरणजात रोमाञ्चप्रभृत्याकारप्रावरणम् । १४ सम्भाषयन् । 'सम्भाषणमाभाषणमालापः कुरुकुञ्चिका' इति वैजयन्ती । १५ प्रतीताः । - चञ्चवः ल० । १६ अवधिज्ञानम् । १७ गतवान् । १२ सुलोचनायाः । १३ ऊचुः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002723
Book TitleMahapurana Part 2 Adipurana Part 2
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size15 MB
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