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## Forty-First Chapter
The word "Swaha" is used after "Devabraahmanaya" (to the divine Brahmana). "Swaha" is used after "Subraahmanaya" (to the good Brahmana) and "Anupamaya" (to the incomparable one). || 35 ||
One should recite the words "Samyagdristi" (right faith) and "Nidhipati" (the lord of treasures) twice, and then "Vaishravana" (Kubera) twice, followed by "Swaha". || 36 ||
A learned twice-born should recite the "Kamya Mantra" (desire-fulfilling mantra) in the same way as before. Now, I will explain the "Rishi Mantra" (mantra dedicated to the sage) as per the scriptures of the worshipers. || 37 ||
**Chuni:** (A short summary of the mantras)
"Satyajataaya Swaha" (to the one born of truth), "Arhajataaya Swaha" (to the one born of worthiness), "Shatkarmaane Swaha" (to the one who performs the six duties), "Graamayataye Swaha" (to the one who guides the village), "Anaadishrotriyaaya Swaha" (to the one who has studied the scriptures since time immemorial), "Snaatakaaya Swaha" (to the one who has completed the studies), "Shraavakaaya Swaha" (to the follower), "Devabraahmanaya Swaha" (to the divine Brahmana), "Subraahmanaya Swaha" (to the good Brahmana), "Anupamaya Swaha" (to the incomparable one), "Samyagdriste Samyagdriste Nidhipate Nidhipate Vaishravana Vaishravana Swaha" (to the right faith, to the lord of treasures, to Kubera), "Seva Phalam Shatparamasthanam Bhavatu" (may the fruit of service be the six supreme abodes), "Apamrityu Vinaashanam Bhavatu" (may untimely death be destroyed), "Samaadhimaranam Bhavatu" (may death in meditation be attained).
**Rishi Mantra:** (Mantra dedicated to the sage)
First, one should recite the word "Satyajataaya Namah" (salutations to the one born of truth). Then, one should recite the word "Arhajataaya Namah" (salutations to the one born of worthiness). || 38 ||
One should recite "Nirgranthaaya Namah" (salutations to the one free from attachments), "Veetaraagaaya Namah" (salutations to the Jina who is free from attachment and aversion), "Mahavaartaaya Namah" (salutations to the one who observes the great vows), "Triguptaaya Namah" (salutations to the one who possesses the three secrets), "Mahayogaaya Namah" (salutations to the great yogis), and "Vividh-yogaaya Namah" (salutations to the one who possesses various yogas). || 39-40 ||
Then, one should recite the word "Vividh" with the fourth case ending, followed by the word "Namah". Then, one should recite "Angadhara" (the one who holds the body) followed by "Purvadharadhvani" (the sound of the previous one). || 41 ||
"Anaadishrotriyaaya Swaha" (to the one who has studied the scriptures since time immemorial), one should recite this mantra. Then, in the same way, one should recite "Snaatakaaya Swaha" (to the one who has
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चत्वारिंशत्तमं पर्व
स्याद्देवब्राह्मणायेति स्वाहेत्यन्तमतः पदम् । सुब्राह्मणाय स्वाहान्तः स्वाहान्ताऽनुपमाय गीः ॥ ३५ ॥ सम्यग्दृष्टिपदं चैव तथा निधिपतिश्रुतिम् । ब्रूयाद् वैश्रवणोक्ति च द्विः स्वाहेति ततः परम् ॥३६॥ काम्यमन्त्रमतो ब्रूयात् पूर्ववन्मन्त्रविद् द्विजः । ऋषिमन्त्रमितो वक्ष्ये यथाऽऽहोपासकश्रुतिः ॥ ३७ ॥
चूणिः - सत्यजाताय स्वाहा, अर्हज्जाताय स्वाहा, षट्कर्मणे स्वाहा, ग्रामयतये स्वाहा, अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा, स्नातकाय स्वाहा, श्रावकाय स्वाहा, देवब्राह्मणाय स्वाहा, सुब्राह्मणाय स्वाहा, अनुपमाय स्वाहा, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे निधिपते निधिपते वैश्रवण वैश्रवण स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्यु विनाशनं भक्तु, समाधिमरणं भवतु ।
ऋषिमन्त्रः-
प्रथमं सत्यजाताय नमः पदमुदीरयेत् । गृह्णीयादर्हज्जाताय नमः शब्दं ततः परम् ॥ ३८ ॥ निर्ग्रन्थाय नमो वीतरागाय नम इत्यपि । महाव्रताय पूर्वं च नमः पदमनन्तरम् ॥३६॥ त्रिगुप्ताय नमो महायोगाय नम इत्यतः । ततो विविधयोगाय नम इत्यनुपठ्यताम् ॥४०॥ विविधद्धपदं चास्मान्नमः शब्देन योजितम् । ततोऽङ्गधरपूर्वञ्च पठेत् पूर्वधरध्वनिम् ॥४१॥ 'अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा' (अनादिकालीन श्रुतके अध्येताको समर्पण करता हूं ), यह मन्त्रपद बोलना चाहिये तदनन्तर इसी प्रकार 'स्नातकाय स्वाहा' और श्रावकाय स्वाहा' ये दो मन्त्र पढ़ना चाहिये (केवली अरहन्त और श्रावकके लिये समर्पण करता हूं ) ||३४|| इसके बाद 'देवब्राह्मणाय स्वाहा' (देवब्राह्मणके लिये समर्पण करता हूं), 'सुब्राह्मणाय स्वाहा' (सुब्राह्मणके लिये समर्पण करता हूं), और 'अनुपमाय स्वाहा' ( उपमारहिंत भगवान् के लिये हवि समर्पित करता हूं ), ये शब्द बोलना चाहिये || ३५ ॥ तदनन्तर सम्यग्दृष्टि, निधिपति और वैश्रवण शब्दको दो दो बार कहकर अन्तमें स्वाहा शब्दका प्रयोग करना चाहिये अर्थात, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे निधिपते निधिपते वैश्रवण वैश्रवण स्वाहा' (हे सम्यग्दृष्टि हे निधियोंके अधिपति, हे कुबेर, मैं तुम्हें हवि समर्पित करता हूं ) यह मन्त्र बोलना चाहिये ॥ ३६ ॥ इसके बाद मन्त्रोंको जाननेवाला द्विज पहले के समान काम्यमन्त्र बोले । अब इसके आगे उपासकाध्ययन-शास्त्र के अनुसार ऋषि मन्त्र कहता हूं ||३७|| जातिमन्त्रोंका संग्रह इस प्रकार है
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'सत्यजाताय स्वाहा, अर्हज्जाताय स्वाहा, षट्कर्मणे स्वाहा, ग्रामयतये स्वाहा, अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा, स्नातकाय स्वाहा, श्रावकाय स्वाहा, देवब्राह्मणाय स्वाहा, सुब्राह्मणाय स्वाहा, अनुपमाय स्वाहा, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे निधिपते निधिपते वैश्रवण वैश्रवण स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधियरणं भवतु ।
तदनन्तर
ऋषिमन्त्र - प्रथम ही 'सत्यजाताय नमः' (सत्यजन्मको धारण करनेवाले को नमस्कार हो) यह पद बोलना चाहिये और उसके बाद 'अर्हज्जाताय नम': ( अरहन्त रूप जन्मको धारण करनेवालेके लिये नमस्कार हो ) इस पदका उच्चारण करना चाहिये ॥ ३८ ॥ 'निर्ग्रन्थाय नमः' (परिग्रहरहित के लिये नमस्कार हो), 'वीतरागाय नमः' ( रागद्वेषरहित जिनेन्द्र देवको नमस्कार हो), 'महाव्रताय नमः' ( महाव्रत धारण करनेवालोंके लिये नमस्कार हो ), 'त्रिगुप्ताय नमः' (तीनों गुप्तियोंको धारण करनेवाले के लिये नमस्कार हो ) 'महायोगाय नमः' ( महायोगको धारण करनेवाले ध्यानियोंको नमस्कार हो) और 'विविधयोगाय नमः' ( अनेक प्रकारके योगोंको धारण करनेवालोंके लिये नमस्कार हो ) ये मन्त्र पढ़ना चाहिये || ३९-४०॥ फिर नमः शब्दके साथ चतुर्थी विभक्त्यन्त विविधद्ध शब्दका पाठ करना चाहिये अर्थात् ' विवि
१ पदम् ल० ।
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