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________________ १६२ महापुराणम् तमानयानुनीयेह नय मां वा तदन्तिकम् । त्वदधीना मम प्राणाः प्राणेशे बहुवल्लभे ॥२०१॥ इत्यनङगातुरा काचित् सन्दिशन्ती सखीं मियः । भुजोपरोधमाश्लेषि पत्या प्रत्यग्रखण्डिता ॥२०२॥ राज्ये मनोभवस्यास्मिन् स्वैरं रंरम्यतामिति । कामिनीकलकाञ्चीभिः उदघोषीव घोषणा ॥२०३॥ कर्णोत्पलनिलीनालिकुलकोलाहलस्वनैः। उपजे किमु स्त्रीणां कर्णजाहे' मनोभुवा ॥२०४॥ स्तनागरागसम्मी परिरम्भोऽतिनिर्दयः । ववृधे कामिवृत्देषु रभसश्च कचग्रहः ॥२०॥ (आरक्तकलुषा दृष्टिः मुखमापाट'लाधरम् । रतान्ते कामिनामासीत् सीत्कृतं वाऽसकृत्कृतम् ॥२०६॥ पुष्प सम्मर्दसुरभिः प्रास्त्रस्तजघनांशुका। सम्भोगावसतौ शय्या मिथुनान्यधिशेरत ॥२०७॥ कश्चिद् वीरभटै विरणारम्भकृतोत्सवैः । प्रियोपरोधान्मन्देच्छरप्यासेवि रतोत्सवः ॥२०८॥ केचित् कोर्त्यङगनासङगमुखसङगकृतस्पहाः । प्रियाङगनापरिष्वङ्गम् अङगीचकुर्न मानिनः ॥२०६॥ निजितारिभटै ग्या प्रिया मास्माभिरन्यथा । इति जातिभटाः केचिन्न भेजु शयनान्यपि ॥२१०॥ शरतल्पगतानल्पसुखसङकल्पतः परे । नाभ्यनन्दन् प्रियातल्पम् अनल्पेच्छा भटोत्तमाः ॥२११॥ स्वकामिनीभिरारब्धवीरालापर्भटः परः। विभावरी विभाताऽपि सा नावेदि रणोन्मुखैः ॥२१२॥ को बढ़ा सी रही है ॥२००। इसलिये मनाकर या तो उन्हें यहां ले आ या मुझे ही उनके पास ले चल, यह ठीक है कि प्राणपतिके अनेक स्त्रियां हैं इसलिये उन्हें मेरी परवाह नहीं है किन्तु मेरे प्राण तो उन्हीं के अधीन हैं ॥२०१।। इस प्रकार कामदेवसे पीड़ित होकर कोई स्त्री अपनी सखीसे संदेश कह ही रही थी कि इतने में उस नवीन विरहिणी स्त्रीको पास ही छिपे हुए उसके पतिने दोनों भुजाओंसे पकड़कर परस्पर आलिंगन किया ॥२०२॥ उस समय मनोहर शब्द करती हुई स्त्रियोंकी करधनियां मानो यही घोषणा कर रही थीं कि आप लोग कामदेवके इस राज्यमें इच्छानुसार क्रीड़ा करो ॥२०३।। उन स्त्रियोंके कर्णफूलके कमलोंमें छिपे हुए भूमरोंके समूह कोलाहल कर रहे थे और उससे ऐसा जान पड़ता था कि कामदेव स्त्रियोंके कानों के समीप लगकर कुछ गुप्त बातें ही कर रहा हो ॥२०४॥ उस समय कामी लोगोंके समूहमें स्त्रियोंके स्तनोंपर लगे हुए लेपको मर्दन करनेवाला और अत्यन्त निर्दय आलिंगन बढ़ रहा था तथा वेगपूर्वक केशोंकी पकड़ा-पकड़ी भी बढ़ रही थी ॥२०५।। संभोगके बाद कामी लोगोंके नेत्र कुछ कुछ लाल और कलुषित हो गये थे, मुख कुछ कुछ गुलाबी अधरोंसे युक्त हो गया था तथा उससे सी सी शब्द भी बार बार हो रहा था ।।२०६।। संभोग-क्रियाके समाप्त होनेपर स्त्री और पुरुष दोनों ही उस शय्यापर सो गये जो कि फूलोंके संमर्दसे सुगन्धित हो रही थी और जिसपर खुलकर अधोवस्त्र पड़े हुए थे ॥२०७॥ जिन्हें होनेवाले युद्धके प्रारम्भमें बड़ा आनन्द आ रहा था ऐसे कितने ही शूरवीर योद्धाओंने इच्छा न रहते हुए भी अपनी प्यारी स्त्रियोंके आग्रहसे संभोग सुखका अनुभव किया था ॥२०८॥ कीर्तिरूपी स्त्री के समागमसे उत्पन्न होनेवाले सखमें जिनकी इच्छा लग रही है ऐसे कितने ही मानी योद्धाओं ने अपनी प्यारी स्त्रियोंका आलिंगन स्वीकार नहीं किया था ॥२०९॥ 'जब हम लोग शत्रके योद्धाओंको जीत लेंगे तभी प्रियाका उपभोग करेंगे अन्यथा नहीं' ऐसी प्रतिज्ञा कर कितने ही स्वाभाविक शूरवीर शय्याओंपर ही नहीं गये थे ॥२१०॥ बड़ी बड़ी इच्छाओंको धारण करनेवाले कितने ही उत्तम शूरवीरोंने बाणोंकी शय्यापर सोनेसे प्राप्त हुए भारी सुखका संकल्प किया था इसलिये ही उन्होंने प्यारी स्त्रियोंकी शय्यापर सोना अच्छा नहीं समझा था ॥२१॥ जिन्होंने अपनी स्त्रियोंके साथ अनेक शूरवीरोंकी कथाएँ कहना प्रारम्भ किया है ऐसे युद्ध के १ बहुस्त्रीके सति । २ रहसि । ३ नूतनवियुक्ता। ४ रहो बभाषे। भेदकुमन्त्रः सूचितः । ५ कर्णमूले। ६ ईषदरुण । ७ सुरतावसाने । ८ नास्माभि-ल०, द०, अ०, प०, स०, इ०। ६ प्रभातापि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002723
Book TitleMahapurana Part 2 Adipurana Part 2
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size15 MB
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