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________________ ५६ महापुराण नायक हैं । कवि भी प्रकृति के कार्यकलापोंपर उसी भावनासे आरोप करता है जो उसके मनमें होती है, उसका मन भी युगमानसकी उपज होता है । भरत - बाहुबलि संवाद और द्वन्द्व भरत- बाहुबलि संवाद नाभेयचरितका सबसे अधिक हृदयस्पर्शी अंश है । बड़ा भाई भरत दिग्विजयके बाद अयोध्या लौटता है । उसका चक्र नगरीमें प्रवेश नहीं करता। क्योंकि अभी भरतकी दिग्विजय अधूरी है, अधूरी होनेका कारण बाहुबलि सहित उसके शेष निन्यानबे भाइयोंका भरतकी अधीनता न मानना है । भरत अपना दूत भेजता है । दूसरे भाई अधीनता मानने के बजाय जिनदीक्षा ग्रहण कर तप करने चले जाते हैं, परन्तु बाहुबलि अधीनता माननेसे इनकार कर देता है । द्वन्द्वका मूल कारण यही है । सेनाओं में टकराहटको रोककर वृद्ध मन्त्री द्वन्द्व युद्धकी सलाह देते हैं । भरत युद्ध में हार जाता है । जीतकर भी बाहुबलि धरतीका भोग नहीं करता, वह जिनदीक्षा ग्रहण कर लेता है । कविने समूचे प्रसंगका सुकुमार और मार्मिक वर्णन किया है । भाषा अनुभूतिमयी और प्रसंगके अनुकूल है । चक्र अयोध्याकी सीमापर ठहर गया है, भरत चकित है कि ऐसा क्यों हुआ । अक्क मियक्कउ बाहिरि थक्कउ उ पइसइ पुरि चक्कु णिरुत्तउ माया णेह णि बंधणि मित्तु व " जैसे अतिक्रान्त सूर्य रुक गया, मानो देवने कीलकर छोड़ दिया, निश्चय ही चक्र नगरीमें प्रवेश नहीं करता । उसी प्रकार जिस प्रकार पवित्र घरमें अन्यायको बढ़ती प्रवेश नहीं करती, जिस प्रकार परपुरुषसे अनुराग करने में सतीका चित्त प्रवेश नहीं करता । इन चीजोंका प्रवेश जिस प्रकार असम्भव है, उसी प्रकार उस चक्रका प्रवेश असम्भव हो गया । णावर दइवें खीलिवि मुक्कउ सुइघरि णं अण्णाय विढत्त उ पत्र दाणि पावि चित्तु व भरत दूत भेजता है, और वह बाहुबलिकी प्रशंसा करता है : जय कुसुमाउह रद्द रमणीवर पई पेच्छिवि घोलइ उप्परियणु चिरभारु दिढबंधु वि पसिढिलु रंभा णव रंभा इव डोल्लइ देव तिलोतम तिलतिल खिज्जइ मेण मीणि व थोवइ पाणिइ Jain Education International अलि माला जीया संधिय सर वियलइ णारिहि जीवीबंधणु हवइ रयंषु सवध सोणीयलु इवाएं आहल वि हल्लइ विरहें उव्वसि उव्वेज्जइ पिय संतप्पइ रवियर माणिइ "हे रति रमणीके वर, हे अलिमालाकी प्रत्यंचापर सरका सन्धान करनेवाले कामदेव आपको देखकर स्त्रियोंके दुपट्टे हिल उठते हैं। स्त्रियोंकी नीवीकी गाँठ खुल जाती है, अच्छी तरह बँधा हुआ चिकुरभार ढीला पड़ जाता है, शुक्र निकलने लगता है और कटितल टपकने लगता है, नेत्रयुगल चलता और मुड़ता है; शरीरमें पसीना बढ़ने लगता है । रंभा नव- कदली वृक्षकी तरह कांप उठती है, और रतिकी हवासे वह अधिक हिल उठती है । हे देव ! तिलोत्तमा आपके कारण तिल-तिल खिन्न हो उठती | विरह में उर्वशी उद्विग्न है । मेनका उसी प्रकार तड़प रही है जिस प्रकार थोड़े पानीमें मछली तड़प उठती है, भले ही वह पानी सूर्य किरणोंसे सम्मानित हो !" इसके बाद जब दूत सन्धिकी बात करता है तो बाहुबलि भड़क जाता है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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