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प्रस्तावना
संझारायजलणु जो भमियउ सो तमजल कल्लोलहिं समियउ संझाराय घुसिणु जं संकिउ तं तमोह मयणाहें ढंकिउ संझारायविडंवि जो फुल्लिउ सो तमतंवेरवइ पेल्लिउ चंदमइंदें तमकरि भग्गउ किं जाणहुं सो तासु जि लग्गउ । मयणिहेण दीसइ सुहयारउ तप्पवेसु वइरिहिं भल्लारउ विसइ गवक्खहिं घणचलि घोलइ वहारु व ससि तेउ णिहालइ रंधायारु वियउ अंधारइ
दुद्ध संक पयणइ मज्जारइ रइ-पासेय बिंदु तेणोज्जलु दिट्ठ भुयंगहि णं मुत्ताहलु । दिट्ठउ कत्थइ दीहायारउ घरि पइसंतउ किरणुक्केरउ
मोरें पंडरु सप्पु वियप्पिवि मुझे कइव ण गहिउ झडप्पिवि । 6/24 पश्चिम दिशामें जो सन्ध्याराग ( सान्ध्य लालिमा ) की आग लगी थी उसे अन्धकाररूपी जलने शान्त कर दिया, जो सन्ध्यारागरूपी केशरकी शंका की गयी थी उसे तम-समूहरूपी सिंह ने नष्ट कर दिया । सन्ध्यारागरूपी जो वृक्ष खिला हुआ था उसे अन्धकाररूपी गजराजने उखाड़ फेंका। चन्द्रमारूपी सिंहने
जको भगा दिया, क्या वही उसके घटनोंमें लग गया ? मगके बहाने वह सुन्दर दिखाई देता है, सफेद रूपमें वह शत्रुओंको सुन्दर दिखाई देता है, वह गवाक्षोंसे प्रवेश करता है, स्तनतलपर व्याप्त होता है और इस प्रकार शशिका प्रकाश वधूहारकी तरह जान पड़ता है। अन्धकारमें वह रन्ध्राकार दिखाई देता है, बिल्लीके लिए दूधकी आशंका उत्पन्न होती है, चांदनीसे उज्ज्वल, पसीनेकी बूंद ऐसी मालूम होती है मानो सांपका मुक्ताफल हो। कहीं घरमें प्रवेश करता हुआ किरण-समूह सर्पके समान दिखाई देता है । भोला मयूर उसे सफेद सांप समझकर किसी प्रकार झटपट उसे पकड़ता भर नहीं।
उक्त अवतरणमें प्रकृति सौन्दर्य और अलंकार सौन्दर्य मिला हुआ है। सन्ध्यारागका आग बनना, अन्धकारका जल बनना, सन्ध्यारागपर केशरकी शंका, तो अन्धकारका सिंहकी भूमिका ग्रहण करना, सन्ध्यारागका वृक्षके रूपमें खिलना और अन्धकारका उसे गज बनकर उखाड़ना, यहाँ तक तो सन्ध्याराग और अन्धकारका संघर्ष है । उसके बाद जब चन्द्ररूपी सिंह अन्धकारके महागजको परास्त कर देता है, फिर अन्धकार और चन्द्र के मिले-जुले रूपके चित्र कवि अंकित करता है। अन्तमें चन्द्रमाका उद्दीपन रूप आता है । जो भ्रान्ति उत्पन्न करता है, सचेतन मानवोंको ही नहीं, पशुवर्गको भी । इसके ठीक बाद दूसरा दृश्य प्रभातका है :
"ताम उग्गमिउ सूरु पुवासइ रइ-रंगु व दरिसिउ कामासइ किंसुय कुसुम पुंजु णं सोहिउ णं जगभवणि पईउ पवोहिउ चारु सूरु वंसहु णं कंदउ लोहिउ ससिरोसेण दिणिदउ मज्झु परोक्खइ आवइ पाविय कमलिणि वेल्लि भणिवि संताविय
एम भणंतु व गयणि व लग्गउणं रयणियरह पच्छइ लग्गउ ।" 16/26 इतने में पूर्व दिशामें सूर्य उग आया, कामाशाने उसे रतिरंगके समान देखा । वह ऐसा शोभित था जैसे टेसूके खिले हुए फूलोंका समूह हो। मानो विश्वरूपी भवनमें दीप प्रज्वलित कर दिया गया हो । मानो सुन्दर सूर्यवंशका अंकुर हो। दिनेन्द्र चन्द्रके रोषसे नाराज होकर लाल है कि यह पापी मेरे परोक्षमें आया तथा कमलिनीको बेल समझकर इसने सताया। ऐसा कहता हुआ वह उस चन्द्रमाके पीछे लग गया। चन्द्र और सूर्यके बीच टक्करके मूलमें सामन्तवादी रागचेतना है । जब पुराण युगके उदात्त नायकों (कुछ अपवाद छोड़कर ) के वर्ग सुन्दर स्त्रीके लिए झगड़ते रहे हैं, तो आखिर सूर्य-चन्द्रमा भी प्रकृतिके उदात्त
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