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प्रस्तावना
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और दूसरा उद्दीपन । कभी-कभी यथातथ्य और अलंकृत रूपमें भी प्रकृतिका चित्रण होता है। अलंकार या नारीकरण रूपमें प्रकृतिचित्रण, प्रकृतिका वर्णन नहीं माना जा सकता। महापुराणमें देशको भौगोलिक स्थितिके वर्णनके साथ प्रकृतिका अलंकृत और यथातथ्य वर्णनके रूपमें प्रकृतिका चित्रण मिलता है।
जैसे मगधदेशके परिचयमें उसकी प्राकृतिक स्थितिका चित्रण है :
"जहाँ नवपल्लवोंसे सघन कुसुमित और फलित नन्दन वन है, जहाँ घूमती हुई काली कोयल ऐसी मालूम होती है, मानो वनलक्ष्मीके काजलका पिटारा हो। उड़ती हुई भ्रमरमाला ऐसी प्रतीत होती है जैसे श्रेष्ठ इन्द्रनीलमणिकी मेखला हो, सरोवरमें उतरी हुई हंसपंक्ति ऐसी मालूम होती है, मानो सज्जन पुरुषकी चलती-फिरती कीर्ति हो, हवासे प्रेरित जल ऐसे मालूम होते हैं जैसे रविके द्वारा सोखे जानेके भयसे कांप रहे हों । जहाँ कमलोंका लक्ष्मीके साथ स्नेह है और चन्द्रमाके साथ विरोध है, यद्यपि वे दोनों समुद्रसे उत्पन्न हुए हैं, परन्तु जड़ (जल) लोग इस तथ्यको नहीं जानते ।"
"अंकुराई णवपल्लवघणाई कुसुमिय फलियई णंदणवणाई। जहिं कोयल हिंडइ कसण पिंडु वण लच्छिहे णं कज्जल करंडु । जहिं उड्डिय भमरावलि विहाइ परिंदणील मेहलिय णाइ । ओयरिय सरोवरि हंसपंति चलधवलवाई सप्पुरुष कित्ति । जहिं सलिलई मारुय पेल्लियाई रवि सोस भएण व इल्लियाई। जहिं कमलहं लच्छिइ सहुँ सणेहु सहुं ससहरेण बड्ढउ विरोहु ।
किर दो बि नाइं महणुब्भवाइं जाणंति ण तं जणु संभवाइं।" 1/12 मगध देशकी प्रकृतिका यह वर्णन, अलंकृत शैलीमें है। उसमें प्रकृतिके सौन्दर्यका वर्णन प्रकृतिके उपकरणोंके द्वारा ही है। यदि सरोवरमें तैरती हुई हंसपंक्ति सज्जनकी कीर्तिकी तरह है, तो वहीं, पानी इसलिए काँप रहा है कि सूर्य अभी उसे सोख लेगा। जड़ लोगोंका स्वभाव यह है कि वे अपने मतलबसे प्यार करते हैं, लक्ष्मी और चन्द्रमा दोनों समुद्रसे उत्पन्न है, परन्तु कमलोंका लक्ष्मीसे स्नेह है और चन्द्रमासे विरोध ।
डूबते हुए 'सूरज' का कवि उत्प्रेक्षाके द्वारा यह विम्ब उभारता है :
रवि अत्थ सिहरि संपत्तु ताम रत्तउ दीसइणं रहहि णिलउ णं वरुणासा वह गुसिण तिलउ णं सग्ग लच्छि माणिक्कु ढलिउ रत्तुप्पलु णं णह-सरह घुलिउ णं मुक्कउ जिणगुणमुद्धएण णिय राय पुंजु मयरद्धएण
अद्धद्धउ जलणिहि जलि पइटु णं दिसि कुंजर कुंभयलु दिट्ट IV/15 इतने में सूर्य अस्ताचलपर पहुँच गया, वह ऐसा लगता है मानो रतिका घर हो, मानो पश्चिम दिशारूपी वधूका केशर तिलक हो, मानो स्वर्गकी लक्ष्मीका माणिक्य ढल गया हो। मानो आकाशके सरोवरसे रक्तकमल गिर गया हो, मानो जिनवरके गुणोंमें अनुरक्त होकर कामदेवने अपना रागसमूह छोड़ दिया हो, मानो समुद्रके जलमें आधे डूबे हुए दिशारूपी हाथीका कुंभस्थल हो । ठीक सूर्यास्तके बाद चन्द्रमा उगता है:
णं पोमाकर यलल्हसिउ पोमु णं तिहुयण सिरि लायण्णधामु सुर उब्भव विषम समावहार तरुणि थल विलुलिय सेयहारु णं अमिय विदु-संदोहु रुंदु जस वेल्लिहि केरउ णाई कंदु IV/16
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