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१७. १६. १४ ] हिन्दी अनुवाद
३९७ मनुष्यों और देवोंके संग्राममें जय प्राप्त करनेवाले, ऐरावतकी सूंड़के समान बाहुवाले अनिन्द्य जिनेन्द्र और सुनन्दाके पुत्रने प्रभुके हाथको हाथसे पीड़ित कर दूसरे स्थिर हाथसे पकड़कर आक्रमण कर
घत्ता-कुमारने राजाको उसी प्रकार उठा लिया, जिस प्रकार नागोंकी स्त्रियों ( नागिनों) से जिसकी गुफाएं सेवित हैं, ऐसे मन्दराचलको अपनी इच्छाके कुतूहल मात्रसे इन्द्रने उठा लिया हो ॥१५॥
मानो सुपुत्रने अपने वंशका उद्धार किया हो, मानो कमलाकरने राजहंसको उठा लिया हो, मानो शुभ परिणामने भव्य जीवको, मानो सुजन समूहने सुकविके काव्यको, मानो मुनिवर स्वामीने व्रत विशेषको, मानो किसी श्रेष्ठ राजाने देशको, मानो गमनव्यापारने बालसूर्यको, मानो पवनने चम्पक कुसुमकी धूलको, मानो कामशास्त्रने कामाचारको, या मानो उसीने संसारके सारको
लिया हो। तब विद्याधर और अमरोंके मानका मदन करनेवाले. अत्यन्त लोभी, धनको सब कुछ समझनेवाले, सज्जनको अवहेलना करनेवाले, समस्त धरतीके पालक अच्छे कन्धोंवाले जिनेन्द्र के प्रथम पूत्र भरतने चक्रका ध्यान किया। वह यमके दंष्ट्रावलयका अनुकरण करता हुआ चंचल और स्फुरायमान हो उठा और रविबिम्बके समान उसने विषम वेगको जीतनेवाले बाहुबलिके देहकी प्रदक्षिणा की, तथा उनके दायें हाथके पास जाकर स्थित हो गया। ऐसा अपने कुलका प्रदीप कौन हुआ है ? सुरतिमें धूर्त चित्रोंका अनुकरण करनेवाला कौन है ? इस प्रकार विश्वमें चक्रवर्तीको कौन जीत सकता है ?
घत्ता-भरत नराधिप विस्मित हो उठा। बाहुबलीश्वरको विश्वने प्रशंसा की। देवोंके द्वारा बरसाये गये कुन्दकुसुमोंको पंकियोंसे मानो आकाशका भाग हँस उठा ॥१६।।
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा .. विरचित और महाभम्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका भरत-बाहुबलि युद्ध
वर्णन नामका सत्रहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ।॥१७॥
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