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________________ १६. २३. १२] हिन्दी अनुवाद ३७५ एक क्षणमें उसे नष्ट कर दूंगा ? आगकी ज्वालाओंको देवेन्द्र भी नहीं सह सकता, मुझ कामदेवके बाणको कौन सहता है ? राजाका एक ही परोपकार हो सकता है कि यदि वह जिनेन्द्रकी शरण में चला जाये। घत्ता-संघर्ष करूँगा, गजघटाको लोटपोट करूंगा और रणमार्गमें सुभटोंको दलन करूंगा। राजा आये और मुझ बाहुबलिके आगे बाहुबल दिखाये ? ॥२१॥ २२ तब दूत अपने नगरके लिए गया और वहाँ राजाके निवासपर लक्ष्मी और पृथ्वोके आकर राजासे सादर निवेदन करता है-“हे देव, बाहुबलि नरेश्वर विषम है, वह स्नेह नहीं बांधता, गुणपर तोर बांधता है ( संधान करता है. ) वह कार्य नहीं बांधता, अपना परिकर बांधता है, वह सन्धि नहीं चाहता, युद्ध चाहता है। वह तुम्हें नहीं देखता, अपना भुजबल देखता है, आज्ञाका पालन नहीं करता, अपने कौशलका पालन करता है, मान नहीं छोड़ता, भयरस छोड़ता है, दैवको चिन्ता नहीं करता, वह अपने पौरुषको चिन्ता करता है, वह शान्ति नहीं चाहता, वह गृहकलह चाहता है, वह धरती नहीं देता, बाणावलि देता है, वह तुम्हें प्रणाम नहीं करता, मुनिसमूहको प्रणाम करता है, वह अंग नहीं निकालता, अपनी तलवार निकालता है, हे देव, भाई तुम्हें पोदनपुर नगर नहीं देता, परन्तु मैं जानता हूँ कि वह रण भोजन देगा, वह रत्नों और गजरत्नोंको उपहारमें नहीं देता वह मनुष्य-वक्षोंके रत्नोंको लेगा। __घत्ता-वह परम्परा कुलक्रम गुरु द्वारा कथित क्षात्रधर्म नहीं समझता, मर्यादा विहीन सामर्ष वह शत्रु अवश्य युद्ध करेगा ।।२२।। २३ इतनेमें दिनमणि ( सूर्य ) खिसक गया, मानो गगनरूपी कामिनीका चूड़ामणि हो, जैसे यामिनीने शान्तिसे शोभित उसे अस्ताचलके प्रति निवेदित किया हो। 'प्रवेश मत करो' यह कहनेके लिए जैसे उसने दिवसके लिए आगसे सन्तप्त दीप दिया हो, मानो चार प्रहर तक अभिक्रान्त करते हुए नभरूपी गजसे वन लोहसे लाल हो उठा। जैसे दिशारूपी नारीने प्रवालोंका घड़ा धारण कर दिग्गजकी हस्तिनीके ऊपर फेंक दिया हो, मानो विश्वरूपी भाजनमें फैलकर तलकर दलकर चूरचूरकर और घोंटकर, कालने, दण्डरहित जनरक्तसे लिप्त जीवराशि दिशापथमें फेंक दी हो, मानो सामने आयी, स्निग्ध पूर्वदिशारूपी मुग्धाका चन्द्रमुख उघाड़कर, मछलियोंकी आंखोंवाली लवणसमुद्रकी जलरूपी लक्ष्मीने उसे सिन्दूरका पिटारा दिया हो, मानो पवनने वरुणके मुख कमल, और विश्वरूपी कमलके चंचल पराग उड़ा दिया हो अथवा गोपिनीके द्वारा कृष्णकी क्रीड़ा रससे भरा हुआ पद्मरागपात्र भुला दिया गया हो, पश्चिम दिशामें जाकर लाल सूर्य अस्त हो गया, जैसे वेश्याने उसे निगल लिया हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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