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________________ १६.७.१३] हिन्दी अनुवाद महीपति सामन्तोंको पकड़ लिया है और उखाड़ दिया है, जिसने दसों दिशाओंमें अपने सामन्त भेजे हैं, जिसने अपनी रूपऋद्धिसे रमणी समूहको रंजित किया है, जिसमें पृथ्वीका मोह अत्यन्त बढ़ रहा है, जिसने अपने बाहुबलसे भरत क्षेत्रको पराजित कर दिया है, ऐसे भरतने यह सुनकर कहा-"यमको यमत्व कोन दिखाता है ? मुझे छोड़कर पृथ्वीपति कौन है ? इस प्रकार जगमें कौन सन्ताप पहुंचा सकता है ? आगको ज्वालाओंसे कौन अपने आपको सन्तप्त करना चाहता है, किसे मेरी प्रभुता अच्छी नहीं लगती, आकाशमें स्खलित होकर जाते हुए किसे अच्छा लगता है ? कौन मेरी सेवा नहीं ग्रहण करता, यह धरती कौन नहीं अजित करना चाहता, समुद्र पर्यन्त धरतीसे कर वसूल करनेवाली मेरी तलवारसे कौन आशंकित नहीं होता, कौन मेरे अनुचरोंको मारता है ? कौन प्रतिकार करता है और मुझे भी मारता है ? कामदेवका वर्णन करनेसे क्या ? नहीं प्रणाम करते हुए किसका सिर दर्पसे गिरता है ?" घत्ता-यह कहकर राजाने अविनयके कारण अमनोज्ञ समस्त सब प्रकारकी सम्पत्ति धारण करनेवाले शत्रुओंको कठोर लेख दिया ॥६॥ तब जनोंके लिए सुन्दर दूत, जहाँ द्रुमदलोंके सुन्दर तोरण हैं, गज चिग्घाड़ रहे हैं, और जिनका भूमिप्रदेश ढका हुआ है, ऐसे नृपकुमारोंके आवासपर गये। स्वामीश्रेष्ठके उन पुत्रोंको प्रणाम करते हुए उन्होंने विनयके साथ निवेदन किया, "सुर-नर और विषधरोंमें भय उत्पन्न करनेवाली राजाकी सेवा करो और उन्हें प्रणाम करो, बहुत प्रलापसे क्या? मिथ्या गर्वसे धरती प्राप्त नहीं की जा सकती।" यह सुनकर कुमारगण घोषित करता है-"हम तब प्रणाम करते हैं यदि उसमें कोई व्याधि दिखाई नहीं देती। तब प्रणाम करते हैं यदि उसका शरीर पवित्र है, तब प्रणाम करते हैं यदि उसका जीवन सुन्दर है। तब प्रणाम करते हैं यदि वह जरासे क्षीण नहीं होता। तब प्रणाम करते हैं यदि वह पीठ देकर नहीं भागता, तो प्रणाम करते हैं यदि उसका बल नष्ट नहीं होता, तो प्रणाम करते हैं यदि उसको पवित्रता नष्ट नहीं होती, तो प्रणाम करते हैं यदि कामदेव नष्ट नहीं होता. तो प्रणाम करते हैं यदि काल समाप्त नहीं होता, तो प्रणाम करते हैं यदि गलेमें यम नहीं लगता और ऋद्धि समाप्त नहीं होती। घत्ता-यदि वह जन्म-जरा और मरणका अपहरण करता है, चार गतियोंके दुःखका निवारण करता है, और संसारसे उद्धार करता है तो हम उस राजाको प्रणाम करते हैं।" ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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