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________________ ३५८ महापुराण [१६.६.३ हित्तभिण्णमहिवइसामंत दसदिसिवहपेसियसामंते। रूवरिद्धिरंजियरामोहें अइपरिवढियसुधरामोहें। णियमुयसत्तिपरजियभरहें तं णिसुणेवि पयंपिउ भरहें। जमहु जमत्तणु को दरिसावइ मई मुएवि किर कवणु रसावइ । एम को वि किं जगि संतावइ को किर सिहि सिहाहि सं तावइ । कहु महु तणउं पहुत्तु ण भावइ के पडिखलिउ जंतु गैहि भावइ । केर महारी को णावजइ एह पुहइ को किर णावज्जइ । आसमुद्दमेइणिकरवालहु को णासंकइ महु करवालहु। को किर भिश्च महारा मारइ को विणिवारइ मज्झु वि मारइ । किं किर वण्णिएण कंदप्पे अणवंतहु णिवडइ कंदप्प । घत्ता-इय जंपिवि राएं णिक्करुणु अविणयविहियमणोजहं ॥ सयलह मि सयलसंपयंधरहं लेहु दिण्णु दाइजहं ॥६॥ आरणालं-ता विगया बहुयरा जणमणोहरा णिवकुमारवासं। ___दुमदललैलियतोरणं रसियवारणं छिण्णभूमिदेसं ॥१॥ तेहिं भणिय ते विणउ करेप्पिणु सामिसालतणुरुह पणवेप्पिणु । सुरणरविसहरभयई जणेरी करहु केर णरणाहहु केरी। पणवहु किं बहुवेण पलावें पुहइ ण लब्भइ मिच्छागावें। तं णिसुणेवि कुमारगणु घोसइ 'तो पणवहुँ जइ वाहिण दीसइ । तो पणवहु जइ सुसुइ कलेवरु तो पणवहु जइ जीविउ सुंदरु। तो पणवहु जइ जरइ ण झिज्जइ तो पणवह जइ पुट्टि ण भज्जइ। तो पणवहु जइ बलु णोहट्टइ, तो पणवहु जइ सुइ ण विहट्टइ। तो पणवहु जइ मयणु ण तुट्टई तो पणवहु जइ कालु ण खुट्टइ । कंठि कयंर्तवासु ण 'चुहुट्टइ तो पणवहु जइ रिद्धि ण तुट्टइ। घत्ता-जइ जम्मजरामरणई हरइ चउगइदुक्खु णिवारइ ।। "तो पणवहु तासु णरेसहो जइ संसारहु तारइ ॥७॥ १० ६. १. MB °सेहाहि । २. MBP किं । ३. P णहु । ४. MBP किर को। ५. M करि । ६. MBP संपयहरहं। ७. १. MBP वओहरा; T वउहरा दूताः । २. BPK °लुलियं । ३. MBP बहुएण । ४. MBP तइ and throughout elsewhere in this Kadavaka | ५. MBP सुथिरु but T सुसुइ । ६. MBP फिट्टइ । ७. MBP आउ । ८. MBP कयंतपासु। ९. MBP चहुट्टइ। १०. MBP दुक्खई वारइ। ११. MP ता; B तहो। १२. MBPK णरेसरहो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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