SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६. ६.२] हिन्दी अनुवाद ३५७ तब प्रसिद्ध मनुष्यराजा भरतने कहा, “प्रचण्ड वायुके समान वेगवाला, तरुण तरणिके समान तेजवाला यह चक्र निश्चलांग क्यों हो गया ?" यह सुनकर पुरोहित बोला, "जिस कारणसे इसके गति प्रसारका निरोध हुआ है उसे मैं बताता हूँ। हे नरेश्वर, देव-देव, हे दुर्जेय भरतेश्वर, सुनिए, जिन्होंने अपने बाहुबलसे शत्रुओंका दमन किया है, पैरोंके भारसे धरतीतलको कपाया है, तेजसे सूर्य और चन्द्रको पराजित किया है, पिताने जिन्हें महीलक्ष्मीका विलास दिया है तथा कीर्ति, शक्ति और जनमात्रा जिनकी सहायक है. ऐसे तम्हारे भाइयोंका यहां प्रतिमल्ल कौन है नखोंको कान्तिसे प्रदीप्त तुम्हारे चरणकमलोंको वे नमस्कार नहीं करते। सिंहके समान कन्धोंवाले जो तुम्हें कर नहीं देते, वे व्यर्थ ही धरतीका उपभोग करते हैं। जिस कारणसे वे आज भी सिद्ध नहीं हो सकते हैं, उसी कारण चक्र नगरमें प्रवेश नहीं कर रहा है। ___घता-कामदेव परमेश्वर इक्षुधनुषसे युक्त धरतीके अपहरण और युद्धके परिकरवाला, कासवका पुत्र, नवकमलमुखी और भुवनके उद्धारमें धुरन्धर-॥४॥ कामदेवसे विलसित, भारी गुणोंसे युक्त, युवतियोंके हृदयको चुरानेवाला, असामान्य विषम साहसवाला, वशी, आलस्यको नष्ट कर देनेवाला और शत्रुसेनाको समाप्त कर देनेवाला । और भी यशोवतीके पुत्रोंसे जेठा परन्तु तुमसे छोटा, सुनन्दाका पुत्र, जिस प्रकार कामदेव, उसी प्रकार, मकरध्वजालय ( मकररूपी ध्वजोंका घर, कामदेवका घर ), सुन्दर मुख, चरित्रका आश्रय, और सवा पांच सौ धनुष ऊँचा, उसीको इस समय कामदेव कहा जाता है, ब्राह्मी सुन्दरीका भाई, पिताके चरणरूपी कमलोंमें रत भ्रमर, श्याम शरीर जैसे मरकतका पहाड़ हो, शत्रुरूपी गजोंके दांतोंरूपी मूसलोंके लिए हाथ फैलानेवाला, पवित्र कुलरूपी आलबाल (क्यारी) का कल्पवृक्ष, चरमशरीरी, तथा शाश्वत सुखश्रीको धारण करनेवाला, गुरुके चरणकमलोंके प्रेमरसके अधीन, पर्वतोंकी गुफाओं तक जिसका यश गाया जाता है, दुस्थित दीन और अनाथोंका भाग्यविधाता, मनुष्यश्रेष्ठ, शरणागतोंके लिए वज्रपंजर ( वज्रकवच ), महापर्वतों और मदवाले महागजोंको खेल-खेलमें दलित कर देनेवाला। दृढ़बाहु और महाबली बाहुबलि। ___घत्ता-वह मनमें उपशम भाव धारण कर स्थित है। यदि वह कहीं भी युद्ध में भड़क उठता है तो चक्रके साथ, सेनाके साथ हे राजन्, वह तुम्हें भी नष्ट कर देगा ॥५॥ प्रकट है सुभट शब्द जिसका, ऐसे उत्तम वज्र धारण करनेवालेसे जो नहीं जीता जा सकता, हे देव जो कलहकालमें मनुष्यमें सम्मान पाता है और दानवको जीतता है। जिसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy