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१५. १७.९] हिन्दी अनुवाद
३४५ श्रेणी ) के विद्याधरपति होकर रहते हैं। झुकी हुई शाखाओं और खिले हुए वनोंवाली यहाँ पचास साठ विद्याधर पट्टियां हैं। और वह उतने ही करोड़ उद्दाम गांवोंको धारण करनेके कारण विभक्त हैं। वे ( दोनों भाई ) वहाँ भोग करते हैं, रहते हैं, दिन बिताते हैं और तुम्हारे पिता ऋषभ जिनको प्रणाम करते हैं।" यह सुनकर राजा भरतने युद्धकी धुरासे अलंकृत गणबद्ध सुर वहां भेजे । वे गये। और उन्होंने विद्याधरपतिसे कहा कि छह खण्ड भूमिमण्डलका विजेता चक्रवर्ती राजा भूमितलपर उत्पन्न हो गया है। और जो भुवनाधिपति ऋषभनाथ है, उसके पुत्र भरतका तुम शीघ्र अनुगमन करो, अभिमान और घमण्ड छोड़ दो।
धत्ता-यदि पार्थिववृत्ति नहीं, तो स्वजनवृत्ति स्वीकार कर लो, क्योंकि दोषी चाहे गुरु हों या अपने गोत्रवाले, वह दण्ड प्रयोग करता है ॥१५॥
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तब वे बन्धके स्नेह और भयको समझ गये। विद्याधर राजाओंने अपना काम समझ
उनका धीर हृदय भी कांप गया। उन्होंने प्रणय और न्यायसे निवेदन किया-"अपने शरीरके तेजके प्रवाहसे आकाशको पीला कर देनेवाले देवदेव ऋषभ जिस प्रकार हैं, उसी प्रकार भरत भी हम लोगोंके लिए आराध्य हैं, बताओ सूर्यके ऊपर कौन तपता है ? बताओ आगके ऊपर कौन जलता है ? बताओ पवनके ऊपर कौन चलता है ? बताओ मोक्षके ऊपर कौन-सी गति है ? बताओ भरतके ऊपर कौन राजा है ?" यह घोषित करनेपर उसके द्वारा विसर्जित पूजनीय अमरकुल आये, महाशब्दवाले नगाड़े बज उठे। सैकड़ों कुलचिह्न उठा लिये गये; अश्व, गज और रथ हांक दिये गये। अपने-अपने परिजनोंको बुला लिया गया। शीघ्र ही वे दोनों भाई निकले, दिशारूपी दीवालोंके चित्रयानोंसे भरे हुए।
घत्ता-विद्याधरोंके अनुचरों, घिरे हुए अपने रत्नविमानोंसे मानवाले वे वहाँ आये, जहाँ राजा निवास कर रहा था ।।१६॥
हाथ जोड़े हुए और सिरसे प्रणाम करते हुए नमि और विनमि राजाओंने राजासे कहाहे नृप, आप हमारे कुल स्वामी हैं, आपको देखनेसे हमारी आँखोंको सुख मिलता है, आपको देखनेसे आपत्ति दूर हो जाती है, आपको देखनेसे लक्ष्मी घरमें प्रवेश करती है । कामदेवको नष्ट करनेवाले परम जिनेश्वर तुम्हारे पिताके आदेशसे स्वर्ण और मणियोंसे निर्मित घरोंवाले अत्यन्त रमणीय विद्याधर-पुरवर, अत्यन्त स्नेहके कारण, हमें दिये गये थे, यदि इस समय आप इन्हें देते हैं तो हम इनका भोग करते हैं, नहीं तो आप ही इनको ले लें, हम फिर दिगम्बर दीक्षा ग्रहण करते हैं।" यह सुनकर राजा बोला, "जो तुमने अपनापन नष्ट नहीं किया, मेरे आज्ञावचनको नहीं
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