SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ महापुराण उद्दामहंगामहं तेत्तियउ कोडिउ धरणेण विहत्तियउ । मुंजंति रमति गमति दिणु पणवंति तुहारउ जणणु जिणु । तं णिसुणिवि भूसियसमरधुर पहुणा पेसिय गणबद्ध सुर । गय तेहिं भणिय खयराहिवइ छक्खंडमंडलावणिविजइ । महियलि उप्पण्णउ चक्कवइ । जो रिसहणाहु मुवणाहिवइ । तहु पुत्तु भरहु लहु अणुसरहो अहिमाणु मडप्फरु परिहरहो । घत्ता-पत्थिववित्ति जइ णउ सयणवित्ति पडिवज्जइ ।। गुरुहुं सडिंभेहं मि दोसिल्लहं दंडु पउंजइ ॥१५॥ २ तो बंधुणेहभउ भावियउ खयरिंदहिं कज्जु विहावियउ । हियउल्लउ धीरु वि कंपियउ पणएण णएण पयंपियउ । तणुतेयपूरपिंगलियणहु जिह देवदेउ तिह पुणु भरहु । अम्हहं आराहणिज्जु हवइ भणु तवणहु उप्परि को तवइ । भणु जलणहु उप्परि को जलइ भणु पवणहु उप्परि को चलइ । भणु मोक्खहु उप्परि कवण गइ भणु भरहहु उप्परि को नुवइ । इय घोसिवि ताई विसजियई आयई अमरउलई पुज्जियइं। तूरई गुरुरवई वियंभियई कुलचिंधसयाई समुब्भियई। चोइय हरिकरिवरसंदेणई आहूयई णियणियपरियणई। खणि वे वि सहोयर णीह रिय दिभित्तिचित्तजाणहिं भरिय। घत्ता-खेयरकिंकरहिं परिवारिय देव समाणहिं ॥ जहिं णिवसइ णिवइ तहिं आइय रयणविमाणहिं ॥१६।। मउलियकरहिं पणवियसिरेहि पहु बोल्लि उ णमिविणमीसरेहिं । अम्हारउ णिव कुलसामि तुहुँ पई दिट्ठह णयणहं होइ सुहुँ। पई दिइ आवइ ओसरह पई दिट्ठइं घरि सिरि पइसरइ । तुह तायहु हयवम्मीसरहो आएसें परमजिणेसरहो। चामीयरमणिणिम्मियधरई अइरम्मई खेयरपुरवरइं। अहिराएं आसि विइण्णाई जइ एवहिं पई पडिवण्णाई। तो मुंजहुँ णं तो 'तुहुँ जि लइ अम्हहं पुणु देइयंबरिय गइ । तं णिसुणिवि राएं भासियउ अप्पाणउं जंण विणासियउ । मेहु आणावयणु ण णिरसियउ तं तुम्हहिं चंगउ ववसियउ । २. P सडिंभरहं। १६. १. MBP ता । २. MBP णिवइ । ३. P दंसणइं । ४. MBP णीसरिय । ५. M दिहिभित्तिचित्तं; B दिहिचित्तिचित्तं; P दिभित्तिहि । ६. MBP अमरविमाणहिं । १७. १. M आवय । २. MBP तुहुं मि लइ । ३. MB दईयंबरिय । ४. B णु । ५. B पहुं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy