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________________ १० १५ २० संधि १३ सोहि माग सिमु णविवि पसिद्धसिद्धिणेयारहो || जीव धरणीसरो चलइ सिमिरं समुल्ललइ सुरसरिहरं कमइ हरिवयणलालाइ जणणियसंकेण चरणाई लिपति अइगरुयभारेण दसदिसिवहं भमइ इणि उरमइ कह कह व भरु सहइ १ गरुडद्धओ घुलइ । धूली हे मिलइ | पडिबलई उवसमइ । करिदाणवेलाइ | तंबोलपकेण । हारेहिं गुप्पंति । सामंतचारेण । If पुलं मइ । विसवाणियं वमइ | फणिपुंगमो तसइ णरवइभुए वसई परणिवबलं गसइ वरवाहिणी चरइ मउ मुयइ गइ महइ । लवण्णवो रसइ । रणजयसिरी हसइ | विसमत्थलिं कसइ । दुग्गं पिपइसरइ | जलदुग्गमं तर इ गिरिदुग्गमं समइ भडथडहिं तुरहिं अमरेहिं खयरेहिं छवि वि संकमइ रायस्स वसि करइ तरुदुग्गमं हरइ | गयणंगणं कमइ । संदर्णादि दुरएहिं । रिउवग्गखयरेहिं | अरिपत्थवे दमइ | अवसो भिसं रमँइ । MBP give, at the commencement of this Samdhi, the following stanza : तीव्रापद्दिवसेषु बन्धुरहितेनैकेन तेजस्विना संतानक्रमतो गतापि हि रमा कृष्टा प्रभोः सेवया । यस्याचारपदं वदन्ति कवयः सौजन्यसत्यास्पदं Jain Education International हि भरहराउ गउ दाहिणदारहो ॥ ध्रुवकं ॥ सोऽयं श्रीभरतो जयत्यनुपमः काले कलौ सांप्रतम् ॥ GK do not give it. १. १. P साहेप्पिणु । २. MB गहिवि समु; P महिवि समु । ३. P सुरसिहरि संकमइ । ४. MBP कह वि । ५. M दुग्गे पि । ६. MBP परपत्थिवे । ७. MBP मरइ; K रमइ, but writes above it मरइ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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