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१२. २०. १३] हिन्दी अनुवाद
२९७ को दाह देनेवाले आप अग्नि हैं, आप दम और यमकरण हैं, इसमें किसी प्रकारको भ्रान्ति नहीं है। सुधियोंके लिए निहितकाम, आप धन देनेवाले कुबेर हैं, प्रबल शत्रुदलका दलन करनेकी क्षमता रखनेवाले पवन हैं ? राजाओंको अपने चरणों में झुकानेवाले ईशानेन्द्र हैं । आप ही विश्व में एकमात्र राजाधिराज हैं। तुम्हारी असिवररूपी जलधारासे कौन-कौन, शत्रुराजारूपी वृक्ष हरियछाय ( जिनकी छाया / कान्ति छीन ली गयो है, ऐसे तथा हरी-भरी कान्तिवाले ) नहीं हुए। आपकी असिजलधारासे विश्वमें किसकी साँस ( श्वास और सस्य ) नहीं बढ़ी ? आपकी असिरूपी जलधारासे अत्यधिक जलवाला होते हुए भी समुद्र त्रस्त हो उठता है और अपना गवं छोड़ देता है। आपको असिरूपी जलधारासे शत्रुओंकी अनेक आँखोंके अश्रुबिन्दु और अधिक हो गये। तुम्हारी असिरूपी जलधारासे कुलमें नित्य ही अशोक मुक्त-भोग हो गया।
धत्ता हे भरत प्रजापति और प्रथम महीपति, पृथ्वीनाथोंके द्वारा चाहे जाते, चरणोंमें प्रणाम करते हुए उनके द्वारा आप वैसे ही सेवित हैं, जैसे कि ताराओं और नक्षत्रोंके द्वारा जिन तथा सूर्यचन्द्र सेवित हैं ॥२०॥
इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुरुषमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका मागध
प्रसाधन नामका बारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥१२॥
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