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११. २१. १२] हिन्दी अनुवाद
२५५ आयु होती है, दूसरेमें तीन सागर, तीसरे नरकमें सात सागर, चौथे नरकमें दस सागर, पांचवें रकमें सत्तरह सागर, छठे नरकमें बाईस सागर प्रमाण रहते हैं और सातवें नरकमें तैंतीस सागर प्रमाण आयु होती है।
घत्ता-आक्रन्दन करते, चिल्लाते हुए सुखसे रहित नारकीय जीव हताश होकर जीते हैं, और तिल-तिल एक दूसरेको काट देते हैं ॥१९॥
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वे नारकीय उस असुन्दर घर्मा धरतीमें जघन्य आयुसे दस हजार वर्ष जीवित रहते हैं। जो धर्माभूमिको उत्तम आयु है वह सुखोंके आशयोंको नष्ट करनेवाली वंशाभूमिकी जघन्य आयु है। जो वंशाभूमिकी उत्तम आयु है वह रौरव ध्वनियोंसे युक्त मेघाकी जघन्य आयु है। जो मेवाकी उत्तम आयु बतायी गयी है वह अंजनाकी निकृष्ट आयु है । जो अंजनाको उत्तम आयु कही गयी है वह अरिष्टाकी उत्तम आयु कही गयी है। जो आयु अरिष्टाकी उत्तम है वही मघवीकी अचिरायु ( जघन्य ) कहो गयी है। दुःखसे सन्तप्त मघवीको जो पूरी ( उत्कृष्ट ) आयु है, वह माधवी नरकभूमिमें आसन्नमरण ( जघन्य आयु ) है । इस प्रकार (ऊपरसे ) नीचे-नीचे विक्रिया शरीरकी रचना और दीर्घ आयुवाले बिल होते जाते हैं। नीचे-नीचे बड़े-बड़े बिल होते हैं, नीचे-नीचे सघन अन्धकार हो जाता है । नीचे-नीचे दुर्दशनीय युद्ध होता है । नीचे-नीचे तीव्र दुःख होता है।
पत्ता-युद्ध करते हुए उनके करोड़ों शस्त्रोंसे दलित शरीरकण, मिले हुए पारद कणोंकी तरह प्रतीत होते हैं ।।२०।।
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मैं दस, आठ, पांच, सोलह, दो, नौ और फिर पांच प्रकारके देवोंका वर्णन करता हूँ। प्रचुर रतिरसकी स्थितिवाली इस रत्नप्रभा भूमिके विवरके भीतर (खर और पंक भागमें) अवधिज्ञानियों या सर्वज्ञोंके लिए प्रत्यक्ष असुरवरोंके चौसठ लाख एवं नागकुमारोंके चौरासी लाख भवन हैं। सपर्णकमारोंके प्रचर आभासे व्याप्त बहत्तर लाख. द्वीपकमारों. उदधिकमारों. स्तनितकुमारों, विद्युत्कुमारों, दिक्कुमारों और अग्निकुमारोंके नौ लाख साठ हजार भवन हैं। इस प्रकार भवनवासियोंके कुल मिलाकर सात करोड़ बहत्तर लाख प्रत्यक्ष भवन हैं। भवनवासी देवोंका इस प्रकार कथन किया गया है। भूतों और राक्षसों, वीणा, वेणु और प्रणवके निर्घोषोंसे युक्त सोलह और चौदह हजार आवास विशेष होते हैं। दूसरे विशिष्ट तथा विमल लक्ष्मीको धारण करनेवाले देव वन, आकाशतल, समुद्र और सरोवरोंके किनारोंपर निवास करते हैं। व्यन्तरोंके सुन्दर निवास गिनती करनेपर संख्यातीत हैं।
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