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११. १६. ११] हिन्दी अनुवाद
२५१ मिलता है। जहां वह स्नान करता है वहीं पीप रुधिर और कीड़ोंसे भरे हुए कूण्ड और पीड़ित शरीर मिलते हैं। दो तीन पांच व्यक्तियों द्वारा पीड़ित कर वह पकड़ लिया जाता है और पोपके सरोवरसे नहाकर ( उसे )
पत्ता-काटकर चमड़ेका परिधान दिया जाता है । तपाये हुए लोहेके कड़े, उसके आभूषण होते हैं ॥१४॥
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वह जहां देखता है, वहीं यम शासन है । जहाँ बैठता है वहींपर शूलासन है । जहां भोजन करता है, वहीं दुर्गन्ध है । नीरस कठोर और विरुद्ध । जो चखता है वह विरस लगता है, जो सोचता है वही मनकी चिन्ता बन जाता है। जो सूंघता है वह बुरी गन्धवाला होता है, नारकीय क्षेत्रमें कुछ अच्छा नहीं होता। ऊध्वं श्वास, अति खांसना, जलोदर, आँखों, पेट और सिरका दर्द तथा महाज्वर ये सब होते हैं। पापोंके फलोंके घर नारकीयकी देहमें सब कुछ व्याधि है।
घता-पलक मारनेके समय तकका भी सुख जहाँ नहीं मिलता, हे राजन्, वहाँ शरीरके दुःखका क्या वर्णन किया जाय? ॥१५॥
"मैं नारायण हैं, मैं प्रतिनारायण हूँ, मैं सुखभाजन राजा हूँ" ऐसा कहते हुए उसपर यम क्रुद्ध हो जाता है और वह मानसिक दुःखसे सन्तप्त हो उठता है। दानव समूहके द्वारा वह प्रेरित किया जाता है और युद्ध करते हुए; उससे उस प्रकार कहा जाता है, 'तुम्हारा इसके द्वारा सिर फाड़ा गया था; श्रेष्ठ महिला और धरतीके लिए मारे गये थे। इस सिंहके द्वारा विध्य महागिरि के गैरिक ( गेरु ) से पिंजर तुम गज मारे गये थे। तुम विषधर इस गरुड़के द्वारा निगले गये थे। तुम अश्ववर इस भैंसेके द्वारा विदीर्ण हुए थे। बाघके द्वारा उसके अविरल नखोंसे तुम हरिण खाये गये थे। इस प्रकार तुम इसको मारो मारो, वह इस प्रकार बोला, मानो वायुने ज्वालाको प्रज्वलित कर दिया हो। नारकीयोंको लड़ाईमें नारकीय लड़ते हैं और भालोंके आसन तथा सब्बलों पर गिरते हैं।
पत्ता-कप्पण कमक (?) हलों और मूसलोंसे वह शत्रुको नष्ट करता है। उसका शरीर उन अस्त्रोंके रूपोंमें परिणमित हो जाता है ॥१६॥
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