________________
२५२
महापुराण
[११. १७.१
१७
अण्णे अण्णु सुसल्ले सल्लिउ अण्णे अण्णु मुसुंढिइ पेल्लिउ । अण्णे अण्णु तिसूले भिण्णउ अण्ण अण्णु रहंग छिण्णउ । अण्णे अण्णु हुआसणि चित्तउ अण्णे अण्णु पसु व्व विहितउ । अण्णे अण्णु खुरुप्पे खंडिउ अणे अण्णु वियारिवि छडिउ । अण्णहु अण्णे खग्गु विहाइउ तहु केरउ जि मासु तहु ढोइउ । लैइ लइ एवहिं काई णिरिक्खहि । मृग वराय मारिवि किं भक्खहि । तउ अउ तंबउ सीसउ ताविउ अण्णहु मज्जु भणेप्पिणु दाविउ । पिवसु पिवसु अरहंतु ण याणइ चंगउ कउलु तुज्झु वक्खाणइ । पत्ता-उम्मग्गें जंति ण णिवारिय णिद्धम्ममइ ।।
परघरिणि रमंति जिह पई रमिय णिबद्धरइ ।।१७।।
अग्गिवण्ण तत्तिय अइरत्ती लोहविणिम्मिय णं तुह रत्ती। तिह एवहिं आलिंगहि माणिणि एह करिंदकुंभपीणत्थणि । मण्णिवि णवजोवण परवाली अवरुंडहि सामरि कंटाली। खेत्तुब्भउ मोणसु तणुजायउ असुरोईरिउ अण्णोण्णायउ। एउ एम पावोहे लइयह
पंचपयारु दुक्खु णारइयहं । तेत्थु ण णारि ण पुरिसु सुयंसउ णग्गउ जिंदु असेसु णउंसउ । पढमहि पुढविहि णारयगत्तई भयधणुतिरयणिछंगुलमेत्तई । वीयहि पणारस दोवारहं । धणुरयणिउ अंगुलई वियारहं । घत्ता-भवहरदेहाउ पहरंतहु रणि रणरणइ ॥
गरुयारउ होइ णारयदेहु विउठवणइ ॥१८॥
१९
तइयहि एकतीसधणुतुंगई चोत्थियाहि 'रयणीदुयजुत्तई पंचमियहि धणुसउ पणवीसउ छट्टियाहि चावहं जिणभणियई देहुच्छेहु दुहोहढुंगमियहि एक्कु पहिल्लइ दुक्कियदुजइ
एक्करयणि भणु कयदुरियंगई। धुउ चावई बासहि पउत्तई । बड्ढिउ वउ आवइ आभीसउ । दोणि सयइं पण्णास जि गणियई। पंचसयाई होति सत्तमियहि । जलहिपमाणई तिण्णि दुइजइ ।
१७. १. MBP सुसेल्लें । २. MBP मुसंढिइ । ३. MBP read this line as अण्णे अण्णु रहंगें छिण्णउ,
अण्णे अण्णु तिसूलें भग्गउ । ४. MBP विहत्तउ । ५. MP लइ तइ एवहिं । ६. MBP मिग । १८. १. MBP तत्ती । २. MBP माणुस । ३. MBP पुहरहि । ४. MBP पण्णारह । १९. १. B रयणीअजुत्तई । २. MBP चावई । ३. B°दुग्गमियहि । ४. PK होइ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org