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संधि ११ पुणु इंदियभेउ वम्महपसरणिवारएण ।। भासियउ असेसु लोयहु रिसहभडारएण ॥ ध्रुवकं ॥
जाणइ सण्णिउ जो पज्जत्तउ पुट्ठउ सुणइ सदु गेयसोत्तिउ । णिल्लोयणतिउ पुट्ठपविट्ठउ
रूदूं णियच्छइ अप्परिमट्ठउ। फासु गंधु रसु णवहि जि भावइ बारहजोयणेहिं सुइ पावइ । सत्तेतालसहस्सई दिटिट्टई अवरु वि दोणि सयई तेसहइं। चक्खिदियहु विसउ वक्खाणिउ जेहउ केवलणाणे जाणिउ । गंधगहणु अइंवत्तसमाणउं सवणु वि जवणालीसंठाणउं। दिट्ठिई पडिम णिएज्ज मसूरी अक्खिय जीह खुरुप्पायारी। "सहरियतसंदेहेसु पयासउ । फासु अणेयरूवविण्णायउ। 'समचउरंसु ठाणु सुरसत्थहु . हुंडु वि णारयगणहु अहत्थहु । मणुयतिरिक्खहु छप्पि पवुत्तई भोयभूमिवियलहु पढमंतई। "खुजउ वावणंगु णग्गोहउ उम्भासिउ तिरिक्खणररोहउ। एइंदिय"णारइय सुसंपुड- जोणिहिं होंति सकम्मसमुब्भड । वियलिंदिय वि वियडजोणीहव संपुड वियड होति गब्भुन्भव । "पासुयजोणि देवणारइयह मीसा गब्भणिवासें लइयहं । सीयलुण्ह उण्हेव हुयासह
ताहं विहि मि तिविहा पुणु सेसह । मंथरगमणहं ससहरवयणहं
संखावत्तजोणि थीरयणहं। पत्ता-तहिं जीव अणेय णउ लहति संपुण्ण तणु॥
णियकम्मवसेण होंति मरेप्पिणु जंति पुणु ॥१॥ MEP give, at the commencement of this Samdhi, the following stanza: -
सूर्यात्तेज गभीरिमा जलनिधेः स्थैर्य सुरातर्विधोः सौम्यत्वं कुसुमायुधाच्च सुभगं त्यागं बले: संभ्रमात् । एकीकृत्य विनिर्मितोऽतिचतुरो धात्रा सखे सांप्रतं
भरतार्यो गुणवान् सुलब्धयशसः खण्डकवेर्वल्लभः ।। M reads विधौ for विधोः; MB read कुसुमायुधात्सुभगता for कुसुमायुधाच्च सुभगं, and खण्डः कवेर्वल्लभः for खण्डकवेर्वल्लभः ।
GK do not give it. १. १. MP गयसुत्तउ; B गयसोत्तउ । २. MB णिल्लोयणु । ३. B तिउपुठ्ठ । ४. MBP रूउ ।
५. MBP सत्तेचालीससहसई । ६. MBP बिण्णि । ७. MBP अइमुत्तं । ८. MBP दिट्ठिहि । ९. M जीय। १०. BT सुहरिय। ११, MB तसदेवेसु । १२. MB°चउरंस । १३. MBP छप्पि य उत्तई। १४. K reads this line before line 12। १५. MBP णारयसुरसंपुड। १६. MBP फासुयं ।
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