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९. २२. ]
हिन्दी अनुवाद
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अपने मोतियों के दांतोंसे इन्द्रधनुषको लीलाका उपहास करनेवाला रत्नधूल से रचित धूलि - साल शोभित था । कहीं पर तोतोंके पंखोंकी छवि से शोभित होता है, कहीं पर अंजनके समूह समान शोभित है, कहीं पर सन्ध्यारागके समान शोभित है । कहींपर कुन्दपुष्पोंके समूह के समान सफेद है। उसके भीतर एकके ऊपर एक तीन पीठ हैं, उनमें सोलह सोपान हैं। चार गोपुरोंसे भूषित तीन परकोटे हैं, जिनमें तरह-तरहके मणियोंके जाल फैले हुए हैं। उसके ऊपर मानस्तम्भ है । ध्वजों, चामरों और घण्टोंसे युक्त जो मानो गज हों। चारों दिशाओंमें चार समुन्नत मानस्तम्भ स्थित हैं, जो दर्शनमात्रसे जयके मदका अपहरण करनेवाले हैं । जो अरहन्तनाथको प्रतिमासे घिरे हुए हैं और जिनका नाग, दानव और मनुष्य जयजयकार कर रहे हैं । फिर जल और कमलों सहित सुन्दर वापियां हैं । पक्षियोंके द्वारा मान्य, जो ऐसी लगती हैं मानो खग महिला हों । जो तीरोंमें विजड़ित रत्नोंकी किरणरूपी मंजरियोंसे आलोकित और चतुष्पथोंके रचना कमसे विचित्र हैं । जो मानो कुवलयधारक ( कमल, पृथ्वीरूपी मण्डल ) नृपशक्ति है, जो मानो भ्रमितरथ ( चक्रवाक, रथका पहिया ) रथको युक्ति है। दिशाओंको छूनेवाली, पानीकी लहरोंवाली, और क्रीड़ा करती मछलियोंसे युक्त खाई है । रत्नों की धूलिसे विनिर्मित तथा अपने मुक्तारूपी दांतोंसे इन्द्र के धनुषकी लीलाका उपहास करनेवाला जिसका परकोटा सोह रहा था । कहींपर शुकपंखोंकी छविवाला शोभित होता है, और कहीं अंजन समूहके समान शोभित होता है । कहीं सन्ध्याराग की तरह लोहित ( आरक्त ) है, कहींपर कुन्दपुष्पोंके समूहके समान सफेद है । उसके भीतर एकके ऊपर एक तीन पीठ हैं और उनकी सोलह-सोलह सीढ़ियाँ हैं, चार गोपुरों
भूषित त्रिशालाएँ हैं जो नाना प्रकारके मणियोंके किरणजालसे प्रसरणशील हैं, उनके ऊपर मानस्तम्भ हैं जो मानो ध्वजों, चामरों और घण्टोंसे सहित गज हैं। वे चारों दिशाओंमें चार खड़े हुए हैं जो देखने मात्रसे जयके अहंकारको चूर-चूर करनेवाले हैं । अरहन्तनाथकी प्रतिमाओं से घिरे हुए तथा नागों, दानवों और मनुष्योंके द्वारा जयजयकार किये जाते हुए। फिर वहाँ कमलों और वापिकाओं से सहित वापिकाएँ हैं, जो मानो पक्षियोंके द्वारा मान्य खगस्त्रियाँ हों। जो तीरोंके रनकिरणों की मंजरियोंसे दीप्त, चारों ओरकी सीढ़ियोंकी परिक्रमासे विचित्र हैं । जो मानो नृपशक्तिकी तरह कुवलय ( नीलकमल भूमिमण्डल ) को धारण करनेवाली, तथा रथकी युक्तिकी तरह घूमते हुए रथांगों ( चक्रवाकों और चक्रों ) वाली थीं। जो दिशाओं में दौड़ते हुए लहरोंसे रमण करती हुई मत्स्यमालाओं से युक्त थीं 1
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घत्ता - हँसते हुए कमलों तथा हवाके लिए बाहर आते हुए मत्स्योंके बहाने जो अपनी चंचल आँखों से मानो देवागमन देख रही हैं ॥२१॥
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जहाँ रतिके द्वारा ( काम ), हंसिनियों के द्वारा मत्त हंस और सुरवधुओंकी हथिनियोंके द्वारा ऐरावतकी सूँड़का स्पर्शं चाहा जा रहा है । भीतर फूलोंकी घर नवद्रुम लताएँ मानो कामकी भल्लिकाओं के समान हैं । जो पत्रों ( पत्तों ओर पत्ररचना ) से मुक्त मानो वरवेश्या हैं । जो सुधीजनों के परिहासके समान फलोंसे नमित हैं । जो प्रियतमसे मिले हुएके समान कंटकित ( रोमांचित ) हैं, हवासे संचालित होनेके कारण जो जैसे नृत्य कर रही हैं । जो मानो श्रेष्ठ विकी वाणीके समान कोमल हैं, जो लाटालंकारके आलापोंसे भी अधिक सुन्दर हैं । जो अभिनव रससार की तरह विस्तृत हैं, जो मानो कामुकोंकी मतियोंकी तरह विकारोंसे युक्त हैं । वहाँपर
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