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________________ ९. २०. १८] हिन्दी अनुवाद । २०७ कोई कहता है-"लो मैं यह हूँ। हंसका पक्ष बैलसे नष्ट कर दिया है"। कोई कहता है-"चूहेको क्यों चलाते हो, क्या मेरे आते हुए बिलावको नहीं देखते"। कोई कहता है-"विषधरको मत चलाओ, रक्तरंजित हाथवाले नकुलको नहीं देखते"। कोई कहता है-"तुम धीरे-धीरे चलो, रोछ। गवयसे मत भिड़ो"। कोई कहता है-"भीड़में प्रवेश मत करो। अपने शरमसे मेरे सारंगको पीड़ित मत करो।" कोई कहता है-"आओ हम अच्छी तरह चलें । तोते तोतेके साथ चले। स्वपक्षीभूत मोरके साथ मोर, और उलूकके साथ उलूक"। कोई कहता है-"वैश्वानर ( आग ) से दूर रहनेवाले वरुणको आगे बढ़ाओ, यहां विचार करनेसे क्या ?" । कोई कहता है"हे पवन, इस समय तुम्हारा अवसर है, तुम मेरे मेघतरुको भग्न मत करो।" कोई कहता है"हे इन्द्र ! बोलो, आकाश देवोंसे भरा हुआ है, इसलिए हम बादमें आयेंगे, और जिनवरके चरणकमलोंकी वन्दना करेंगे।" पत्ता-किसी देवीके द्वारा हाथमें लिया गया नीलकमल दिखाई देता है, मानो वह मुकुटोंके अग्रभागमें लगे चन्द्रमणि किरणोंके द्वारा हंसा जा रहा हो ॥१९।। २० एक दूसरी देवविलासिनी हाथमें कुसुममाला लिये हुए ऐसी ज्ञात होती है, मानो कामदेवकी सुन्दर छोटी-सी शस्त्रशाला हो। एक और स्त्री चन्दन सहित दिखाई देती है, मानो मलयगिरिके तटबन्धपर लगी हुई वनस्पति हो । एक दूसरी केशरपिण्डसे इस प्रकार मालूम होती है, मानो बालसूर्यसे युक्त पूर्व दिशा हो । एक और दूसरी दर्पण सहित ऐसी मालूम होती है, मानो मुनिवरकी मति हो। एक और दूसरी कामदेवके चिह्नसे रतिको समान जान पड़ती थी। अक्षत ( चावल, जिसका कभी क्षय न हो ) धारण करनेवाली कोई ऐसी मालूम हो रही थी मानो मोक्षकी सखी हो। ऊंचे स्तनोंवाली कोई ऐसी मालूम होती थी, मानो शुभधन ( कलश ) वाली भूमि हो। एक और प्रस्वेदयुक्त शरीरवाली ऐसी लगती थी, मानो गंगानदी हो। एक और हंस तथा मयूरसे सहित ऐसी लगती थी मानो गिरिघाटी हो। एक और मलसे रहित, विद्याके समान थी। एक और खिली हुई जुही पुष्पकी तरह सुरभित थी। एक और सरस और भावपूर्ण नृत्य करती है, एक और कूटतानमें भरकर गाती है। एक और वीणा वाद्यान्तर बजाती है, एक और परमतीर्थंकरका वर्णन करती है। इस प्रकार प्रसन्न और प्रसाधित मुखों और चंचल मृग नेत्रोंवाली सत्ताईस करोड़ अप्सराओंसे घिरा हुआ सौधम्यं इन्द्र, तथा चौबीस करोड़ अप्सराओंसे घिरा हुआ ईशान इन्द्र चला। इस प्रकार जबतक देव चले, तबतक कुबेरने समवसरणकी रचना कर दी। इन्द्रकी आज्ञासे उसने जिस प्रकार. उसे बनाया, मुझ जड़ कवि द्वारा उसका किस प्रकार वर्णन किया जा सकता है ? पत्ता-बारह योजन विशाल जिसका तलभाग इन्द्रनील मणियोंसे निबद्ध था-गोल विशुद्ध वेष्टित परकोटेवाला ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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