________________
१०८
[५. १५. १४
महापुराण घत्ता-पइ भल्लां कडउल्लउं का वि देइ करि णेउरु ॥
___ उद्दामें इय कामें संताविउ सथलु वि पुरु ॥१५॥
१६
रचिता-कुलधणसयणमोहमाणुण्णइवीलाहरणववसियं ।
इसिवयमिव वहति रमणीयउ जस्स सिणेहविलसियं ॥१॥ जिह जिह सुंदरु खेल्लइ रच्छइ तिह तिह हियवउ हरइ वरच्छहिं । सोम्मे सुदंसणु पढसु कुमारउ पेच्छंतिइ वाहुबलि कुमारउ । काइ वि कउ कवोलि कर कोमलु तणुतावेण कढइ सरकोमलु । काहि वि विरहसिहिं पउलिउ पलु धवलु वि कमलु हुवउ णीलुप्पलु । सहइ कामु महुसमयागमणे - णिहय का वि पियसमयागमणे । मउलिय फुल्लिय मल्लिय काणणि मंडणू देइ पुरंधि ण काणणि । णिग्गय पल्लव णवसाहारहु मुयइ तत्ति विरहिणि साहारहु । पइ मेल्लेप्पिणु लवइ व कोइल सुहयत्ते किर भूसइ को इल। मुहमरुपरिमलमिलियसिलिम्मुह जे ते णं कंदप्पसिलिम्मुह । का वि चवइ पिय हउं तुह रत्ती अज्जु गइय महु दुक्खें रत्ती। का वि भणइ पिय करि केसग्गहु वियलउ मालइकुसुमपरिग्गहु । का वि कहइ लइ चुंवहि वयणउं अवरु मे देहि किं पि पडिवयणउं । घत्ता-णउ मेल्लइ कवि बोल्लइ म करहि काई वि विप्पिउ ॥
घरु वित्तु वि णियचित्त वि सयलु वि तुज्झु समप्पिउ ॥१६॥
रचिता-क वि रुणुरुणइ किं पि सुइसुहयरु मणरुहविसिहसल्लिया।
पिययमवयणकमलरसलंपडि तरुणीमहुयरुल्लिया ॥१॥ जो सूहउ महिलहिं माणिजइ कंदप्पु जि पुणु कहु उवमिजइ । गब्भि सुणंद हि रूवरवण्णी तासु बहिणि अवर वि उप्पण्णी । णवजोव्वणि चडंति सा छज्जइ चंदु कलंके वयणहु लज्जइ। रत्तुप्पलु पयसोहइ जित्तउ तेण वि अप्पउ सलिलि णिहित्तउ । भूवंकत्तणु थणथड्डत्तणु
अहरहु केरउ अइराइत्तणु । पडिआयहं दंतहं धवलत्तणु जणमारण णयणहुँ मि चलत्तणु । तुच्छोयरवासिहि गंभीरिम णाहिहि अवरु णियंबहु वडिम । कंचीदामएण दढबंधहु
रहियंगहु परलोयविरुद्धहु । सीसारूढकेसकुडिलत्तणु
पुरिसोवरि माणसकढिणत्तणु ।
१६. १. B हंति । २. MBP सोमु । ३. P विरहसिहिहिं । ४. B मंडलु । ५. K सिलीमुह । ६. MBP
कि पि देहि । १७. १. M अइरत्तत्तणु; BP अइरायत्तणुं । २. M कंचीदामणएण ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org