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________________ ५. १५.१३] - हिन्दी अनुवाद १०७ १४ जो सघन स्तन, नयन, मुख, कर और चरणतल आदि समस्त अंगोंसे शोभित है, जिसने अपने विषयरूपी विषकी विरस वेदनाको शान्त कर दिया है, और जो शीलरूपी लक्ष्मीसे शोभित है.ऐसी अपनी नखकान्तिसे नक्षत्रोंको जीतनेवाली, सुलक्षणा, कोमल शरीरवाली, ब्राह्मी नामकी एक और कन्या यशोवती सतीके शरीरसे जन्मी। शोकसे रहित भोगोंको भोगनेवाली, लोकको आनन्दित करनेवाली सुनन्दासे, सर्वार्थसिद्धिसे च्युत सुन्दर परमेश्वर ( बाहुबलि) हुए, मानो पन्नोंका महीधर हो। नहीं पके हुए बांसके समान कान्तिवाला शिशु बालक बाहुबलि वहां उत्पन्न हुआ। मैं अपने-आपको तुच्छ बुद्धि मानता हूँ। पहले कामदेवका क्या वर्णन करूं। गरजते हुए मेघ और समुद्रके समान जिनका स्वर है, जिनके हाथ अगलाके समान दीर्घ और लम्बे हैं, जिनका मुख पूर्णचन्द्रके समान है, जो यशके कल्पवृक्ष हैं, जिनके हाथ और सिर लक्ष्मीके क्रीड़ागजके समान हैं, जिनका वक्षस्थल नगरके किवाड़ोंकी तरह विशाल है, जिनके कन्धे वृषभ और सिंहके समान हैं, जिनका बल अस्खलित है, जिन्होंने आशारूपी मदगजोंके गलेकी शृंखला चकनाचूर कर दी है, जिनके केश नीले स्निग्ध कोमल और परिमित हैं, जिनके शरीरके क्षीण मध्य प्रदेशमें रतिकी रंगभूमि है, जो अंग ( शरीर ) के होते हुए भी अपूर्व अनंग ( कामदेव ) हैं । जिनके नितम्ब विकट हैं, बिम्बारूपी अधर आरक्त हैं, जो इक्षुदण्डके धनुष और डोरीपर सर सन्धान करनेवाले हैं। पत्ता-( ऐसे बाहुबलिके ) सघन नवयौवनमें आनेपर, ( कामदेवके ) उन पाँच प्रसिद्ध प्रचण्ड बाणोंसे, कम्पित मनवाली नगर स्त्रियाँ बिद्ध हो उठीं ॥१४॥ जो फैलती हुई कामरूपी आगके रस (प्रेम ) से शोषित अंगोंसे काली हो चुकी है, ऐसी कोई बाला अपने प्रियके लिए विलाप करती है, चलती है, गिरती है। कोई सन्तोष उत्पन्न करनेवाली कोमल सुन्दर मुड़ती हुई नजरोंसे देखती है। कोई पैरोंपर गिरती हुई दिखाई देती है, कोई विनयपूर्वक कुछ भी कहती है। कोई कहती है कि मुझे आलिंगन दो, यदि तुम मेरा आँगन छोड़ोगे तो तुम्हें पिताकी देवेन्द्रोंके लिए भयोंको उत्पन्न करनेवाली कसमें हैं। कोई चंचला वस्त्रांचलसे लग जाती है और वहां सौभाग्यकी भीख मांगती है। कोई रत्नोंसे बना कण्ठाभरण, कंकण और कटिसूत्र देती है, कोई उद्भ्रान्त मन होकर उनमें नेत्र लोन करके देखती है, कोई जामाताको आलिंगन देती है; कोई तेलसे पैरोंका प्रक्षालन करती है, कोई ( कढ़ीके लिए ) दूधको बघार देती है वह छांछ नहीं देख पाती, कोई रस्सीसे लटके हुए बालकको घड़ा समझते हुए भयानक कुएं में डाल देती है; कामदेवको देखते हुए किसीके द्वारा बछड़ा समझकर कुत्तेको घरमें बांध लिया गया। किसीका नीवी बन्धन खिसक गया, और प्रेमजल हृदयतलपर फैल गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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