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रचिता - नियमइणयणविहवपविलोइयपरणर छिद्दचारिणो । विरइयविसालदोसेसु पिहणय राहयारिणो ॥ १ ॥ मंतचारणिम्महियाहंडल |
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बुद्धिलातोलियमहिमंडल बुड्ढा जेहिं ण सेविय भत्तिइ ते सुंदर जाण दुवियड्ढा होंति अबुह वुहसंगें बुद्धा बुहसेवाए बुद्धि उप्पज्जइ सुस्सूसा सवणु वि संधारणु तिहि होइ मंतहु संबंधिणि णि सुणिक्खा उस मंडणधय ताइ मंतु अवसे णिफॅज्जइ घत्ता-आढत्तइ कम्मत्तइ पढमुवाउ चिंतेवउ ॥ रसत्तिवि धणजुत्ति वि देसु कालु जाणेबउ ||८||
सुयद्धरण दुट्टणिग्गहणु वि जणवयदोससमणुजा सुच्चाइ किसि पसुपालणु सहुं वाणिजें चडवण्णासमु धम्मु तइत्तिय ते अपणु पईं पुरउ करेवा ता कम्मु जगसंतिपयास उ अय तिवरिस जव तेहिं हुणेवड जं जि पढेव तं जि करेवड
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रचिता—अवि य सहरिस पुरिस देढपोरिस सुकयावायरक्खणं । अविरलमिलिय विउलफलसिद्धि वि जाणसु मंतलक्खणं ॥१॥ एं छट्ठासंगहणु वि । दंडणी सा पुत्त वुञ्चइ । वत्त भणिज्जइ महिवइपुजें । अज्ज व सुंदर होंति ण सोत्तिय । हीण दीण दाणेण भरेवा । जयभूय हयणसंतोसउ । जीवदयaणु भणेवउ । असि ण धरेवर दाणु लएवउ । तिण सुत्तु सरीरि ठेवैवउ । अण्णारि मई ताहं ण उत्ती । चिहोमु णिश्चातिहिभोयणु । ते खाहिंति जीउ मारिवि जड ।
णणणचरित् उ बंभचेरु अहवा कुलउत्ती चिण्हाणु जिणपडिमापूयणु इय मज्जाय विलंघवि लंपड
चंति कयाइ वि यत्तिइ । कुलबलसिरिमयजलणें दड्ढा । चंपयवासें तिले वि सुगंधा । सा सत्तविह कुमार कहिज्जइ । मो गणु णा णिच्छयमणु । सा वि वि जिगचिंतामणि । गुरुयणगय सुयगय नियमणगय । सो पंचविहु कहति महामइ ।
घत्ता- - सुयसंगहु करुणावहु दाणु घरणिजणधारणु ॥ इय इट्ठउ मई सिट्ठउ खत्तियकम्मवियारणु ॥९॥
८. १. MBP बहु । २. MBP तिल व । ३. MBP कहति । ४. MBP णिप्पज्जइ ।
९.
१. MBP दढपउरिस । २. MBP महगणं । ३. K वं षि पढ़ेंबड जंजि करेवउ । ४. MBP दंसणु णाणु चरितु । ५. MBP घरेवरं ।
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