SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५.९.१६] हिन्दी अनुवाद अपनी बुद्धिरूपी नेत्रोंके वैभवसे, शत्रुपक्षके छिद्रोंको देखनेवाले, स्वामीको शोभा बढ़ानेवाले चरपुरुष उसके द्वारा किये गये विशाल दोषोंको ढकनेवाले होते हैं। अपनी बुद्धिरूपी तुलापर समस्त ब्रह्माण्डको तौलनेवाले तथा मन्त्रप्रयोगसे इन्द्रको पराजित करनेवाले वृद्धोंकी जिसने सेवा नहीं, की है, ऐसे उन कुलमूर्खाको कुल, बल, श्री और मदको ज्वालामें दग्ध समझो। पण्डितोंकी संगतिसे मखं भी पण्डित हो जाते हैं. उसी प्रकार जिस प्रकार 'चम्पा' की गन्धसे तिल सगन्धित हो जाते हैं। पण्डितोंकी सेवासे बुद्धि उत्पन्न होती है, यह सेवा सात प्रकारकी कही जाती हैशुश्रूषा, श्रवण, सन्धारण, मोदन, ग्रहण, ज्ञान और निश्चय मन ( तर्क-वितर्ककी शक्ति)। मन्त्रसे सम्बन्धित बुद्धि तीन प्रकारकी होती है, और जो तीनों लोकोंमें चिन्तामणि कही जाती है । हे इक्ष्वाकु कुलके मण्डन-ध्वज, सुनो-एक बुद्धि गुरुजनसे प्राप्त होती है, दूसरी बुद्धि शास्त्रसे और तीसरी अपने मनसे उत्पन्न होती है। इससे मन्त्र अवश्य सिद्ध होता है। महामति मन्त्रको पांच प्रकारका बताते हैं। पत्ता-सुनो, कार्यको प्रारम्भ करनेपर पहले कार्यको चिन्ता करनी चाहिए । मनुष्यशक्ति, धन, युक्ति तथा देश-कालको जानना चाहिए ॥८ और भी, हे दृढ़पौरुष पुरुष, जिसमें अपायका रक्षण किया गया है तथा अविरल रूपसे विपुल फलकी प्राप्ति हो, तुम ऐसे मन्त्र लक्षणको जानो। सुजनका उद्धार, दुष्टोंका निग्रह, न्यायसे करके रूपमें छठे भागको ग्रहण करना, जनपदके दोषोंका शमन करना. इनका जो विचार करती है, हे पुत्र वह दण्डनीति कही जाती है । वाणिज्यके साथ कृषि और पशुपालनको राजाओंके द्वारा पूज्यने वार्ता कहा है। चतुर्वणं आश्रम और धर्म त्रयीविद्या है। श्रोत्रिय ( ब्राह्मण ) आज भी सुन्दर नहीं होते। उन्हें तुम अपनेसे आगे रखना, दीन-हीनोंको दानसे सन्तुष्ट करना। उनका काम जगमें शान्तिका प्रकाशन करना और भूतग्रहोंको शान्ति करना है। अज तीन वर्षके जोको कहते हैं उनसे यज्ञ करना चाहिए, लोगोंमें जीवदयाका प्रचार करना चाहिए। जो पढ़ा जाये उसीको किया जाना चाहिए। उन्हें दर्शन, ज्ञान और चरित्र कहना चाहिए। तीन डोरोंका जनेऊ शरीरपर धारण करना चाहिए। ब्रह्मचर्यसे रहना चाहिए. अथवा किसी कल-पत्रीसे विवाह का चाहिए, उनके लिए मैंने दूसरी स्त्री नहीं बतायी। नित्य स्नान, जिनप्रतिमाका पूजन, नित्य होम करना, नित्यप्रति अतिथिको भोजन देना । लेकिन वे लम्पट और जड़ इस मर्यादाका उल्लंघन कर जीव मारकर खायेंगे। घन्ता-श्रुतसंग्रह, करुणपथ, दान और धरतीके लोगोंका पालन करना, इस प्रकार मैंने क्षत्रिय कर्मकी विचारणा की ॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy