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२.१.१२]
हिन्दी अनुभव
अपने गुणरत्नसमूहकी किरणमंजरीसे राजवंशको धवलित करनेवाला और असामान्य पुण्य वृक्षकी शाखासे आश्रित वह राजहंस बड़ा होने लगा। नामकरण और चूड़ाकरण आदि उसका सब कुछ विशेष शोभाके साथ किया गया। जो माँके यौवनरूपी फलके गुच्छेके समान, विह्वल लोगोंके लिए कल्पवृक्षके समान, सुधि-वचनामृतके लिए बिन्दुप्रवेशके समान, मित्रोंके चित्तोंके संग्रहके लिए आश्रयस्थानके समान, गुणोंको प्रशंसाके लिए प्रकाशन मार्गके समान, रोग और शोकसे रहित स्वर्गके समान, पिताके स्वभाव संचयके समान, बन्धुस्नेहके बन्धनसे घिरे हुएके समान, अनुचर जनों के लिए चिन्तामणिके समान, शत्रुरूपी पर्वतोंके सिरोंके लिए गाजके समान, निखिल न्याय और सद्भावको निधिके समान, नाश, निर्माण और उद्धारमें विधाताके समान, भार सहन करनेवाली धरतीके समान, भूरिभोग (प्रचुर फन / प्रचुर भोग ) वाले नागके समान, दुदर्शनीय मध्याह्न रविके समान, इन्द्रके वज्रके समान वज्र शरीर, सौन्दर्य समुद्रके प्रवाहके समान, वनितासमूहके लिए कामदेवके समान था।
पत्ता-जिसके वक्षःस्थलपर लक्ष्मी, असिदलपर धरती, बाहुओंमें जय करनेवाली जयश्री और मुखमें सरस्वती निवास करती है और जिसकी कीर्ति तीनों लोकोंमें विहार करनेवाली है ॥४॥
जो गिरि, नदी, कलश, वज्र, कमल, अंकुश, वृषभ और मत्स्यके लक्षणोंसे अंकित है तथा जो सुरों, नरों एवं विद्याधरोंकी वनिताओंकी वीणाध्वनिमें गाया जाता है । जो यशसे प्रसाधित है। जो मानो (कसौटीपर) कसा गया सौभाग्यपुंज है, मानो जिसे प्रयाससे विधाताने गढ़ा है, जिसके भयसे आग जल-जलकर अंगार होती है, जीवित नहीं रहती, और अन्तमें शान्त हो जाती है। समुद्र यद्यपि प्रमादी है, फिर भी ( जिसके डरसे ) स्थिर नहीं रहता, जड़का (जल, जड़) संग करनेपर भी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करता, जिस भरतकी मर्यादाका समुद्र पालन करता है, जिसके भयसे यम स्थिर हो गया है, जिसके लिए नागराज एक क्षुद्र कीड़ा है। चन्द्रमा भी जिसके लिए मयूरचन्द्रके समान है । वह (चन्द्रमा) पक्ष-पक्षमें क्षीण होता दिखाई देता है; और पवन भी जिसके भयसे चलनेका अभ्यास करने लगा है। इन्द्र भी अपने धनुषपर डोरी नहीं चढ़ाता, और आज भी लोग उसी रूपमें जानते हैं। वह अपने हाथमें शस्त्र कभी नहीं दिखाता । वह विनयसे विनम्र होकर घर आता है।
घत्ता-जो अलिकुलसे चंचल हैं, जिनसे मदजल चू रहा है, जो पहाड़ोंकी दीवारोंका विदारण करनेवाले हैं, जो गर्जना नहीं कर रहे हैं, जिनकी सूड़ें टेढ़ी हैं, ऐसे दिग्गज जिससे त्रस्त रहते हैं ॥५॥
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