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३. ४. ११]
हिन्दी अनुवाद करती हुई, विचित्र वस्त्रोंसे आन्दोलित होती हुईं, नय और सप्तभंगीकी विधिसे बोलती हुई, मिथ्यात्व और मदके कारणोंका निरसन करती हुई, इन्द्रादि देवोंमें अनुरक्त रहनेवाली वे मानो दानवारि ( इन्द्रादि देवों )में लीन रहनेवाली भ्रमरियाँ थीं जो दानवारि ( मदजल )में रत रहती हैं।
घत्ता-ये और दूसरी कन्याएँ मनुष्यनियोंका रूप धारण कर अत्यन्त भक्तिभावके साथ श्री मरुदेवीके पास आयीं ॥२॥
सुरवर लोकसे च्युत कोमल मृणालकी तरह कोमल भुजावाली परमेश्वरी आर्यसुताको देवकुमारियोंने इस प्रकार देखा मानो ( उसकी रचनामें ) विधाताका विज्ञान समाप्त हो गया हो। सर्वांग और अवयवोंसे सुलक्षण, नाग, सुर और नरोंके मनको उत्तेजित करनेवाली, चारणोंके द्वारा वन्दनीय चरण युगलोंवाली उसकी अत्यन्त सुन्दर स्तोत्रोंसे देवियोंने स्तुति की-“हे विश्वगुरुको जन्म देनेवाली माँ तुम्हारी जय हो, स्तनतलपर हिलते हार मणिवाली तुम्हारी जय हो, कर्मरूपी काननके लिए आग लगानेवाली लकडीके समान आपकी जय हो. धर्मरूपी वक्षके जन्मको धारण करनेवाली, आपकी जय हो, तुम्हें देख लेनेपर पापमल नष्ट हो जाता है और सोचा हुआ फल प्राप्त हो जाता है। तुमने महिला-जन्मका फल प्राप्त कर लिया। तुम्हारी कोखसे जिनश्रेष्ठका जन्म होगा।"
पत्ता-अत्यन्त सरस नृत्य करता हुआ, हाथोंकी अंजली बनाकर पैरोंमें पड़ता हुआ, अमर-विलासिनी-समूह वहां पहुंचता है और सेवा करना चाहता है ॥३॥
कोई देवीके ललाटपर तिलक करती है, कोई दर्पण आगे रखती है, कोई श्रेष्ठ रत्नाभरण अर्पित करती है, कोई केशरसे चरणका लेप करती है, कोई मधुर स्वरमें गाती-नाचती है। कोई दूसरा विनोद प्रारम्भ करती है, पैनी छुरीवाली कोई परिरक्षा करती है। कोई दण्ड लेकर द्वारपर स्थित है । कोई-कोई आख्यान कहती है, कोई दिये गये क्रीडाशुकको धारण करती है। कोई बार-बार विनयसे नमन करती है। कोई गंगाके जलसे स्नान कराती है । कोई माला, उजला वस्त्र . और सुगन्धित लेप देती है । भाग्यविधाता, सुखनिधि और अभीप्सित जिनेन्द्रदेवको प्रकट होनेके जब छह माह रह गये तो राजाके आँगनमें निधियोंमें धन रखनेवाले कुबेररूपी मेघने रत्नोंकी बरसा की।
घत्ता-सरोवरके कमलपर हंसिनीके समान, सुन्दर और सुखद, तथा ठीक है अनभाग जिसका, ऐसे शयनतलपर वह मेरुदेवी सोती है। जिसके उरतलपर हारावली झूल रही है ऐसी वह स्वयं स्वप्नावली देखती है ॥४॥
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