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[२. १४.९
महापुराण सुरतरुवरविणासि सुच्छाया कम्मभूमिभूरुह संजाया। कडुयगरलु णीरसु वंचिजइ जं महुरउ सुसाउ तं चिज्जइ । खत्तियवंसत्थलथिरकंदें
एम भणेप्पिणु णाहिरिंदें। णिवडमाणु अब्भुद्धरियउ अणु हत्थिकुंभि किउ मट्टियभायणु । घत्ता-कणकंडणसिहिसंधुक्कणई पयणविहाणइं भावियई।
कप्पाससुत्तपरियड्ढणइं पडेपरियम्मई दावियई ॥१४॥
१५ तासु घरिणि मरुएवि भडारी जाहि रूवसिरि अइगरुयारी। अमरहं पंतिइ पयपणवंतिइ लंघियाई अम्हइं जययंतिइ। कमयलराएं काइं गविट्ठउ । एम णाई णेउरहि पघुट्ठउ । पण्हिहिं रत्तउ चित्तु पदसिउं अंगुलियहिं सरलत्तु पयासिउं । अंगुठुण्णंईइ जं गूढइं
गुप्फैइं तं किर पिसुणइं मूढई। णीरोमउ विसिरउ वट टुलियउ मसिणउ सोहियाउ उजलियउ। जंघउ कमहाणिइ ओहरियउ दि?उ णं खलमित्तहं किरियउ । गूढई गरवइमंताभास
वायरणाई व रइयसमासह। णिविडसंधिबंधई णं कव्वई देविहि जण्हुयाइं अइभव्वई। ऊरुयखंभ णराहिवदमणहु तोरणखंभाइं व रइभवणहु । जेण ससुरणरु तिहुयणु जित्तउ कामतच्चु जं देवहिं वुत्तउ । दिण्ण थत्ति तहु सोणीबिंबहु किं वण्णमि गरुयत्तु णियंबहु । घत्ता-गंभीर णाहि तहि मज्झु किसु उयरु सतुच्छेउ दिटठु मई ।।
संसग्गवसे गुणु कासु हुउ जो णवि जायउ जम्मि सई ॥१५॥
तिवलीसोवाणेहिं चडेप्पिणु रोमावलिकुहिणी लंघेप्पिणु । सिहिणगिरिंदारोहणदोरइ लग्गउ वम्महु मोत्तियहारइ । पियवसियरणु वसइ भुयमूलइ सुइसोहग्गु जाहि हत्थयलइ । णेहबंधु मणिबंधि परिदिउ लायण्णे समुद्दु ण संठिउ । जाहि तणउं तं जणियवियारउं महुरउ इयरहु केरउ खाइउ । कंठलीह णउ कंबू पावइ । परसासाऊरिउ कह जीवइ । णियडणिविट्ठउ जियससिकतिहि धोयहि धवलहि दंतहु पंतिहि । ३. P पिज्जइ । ४. MBP परियट्टणइं । ५. P°पडियम्मइं। १५. १. Tणहकंतीए but adds ! णहयंतिइ इति पाठे आकाशादागत्येत्यर्थः । २. MBP वित्त पदरिसिउः
T वित्तु वृत्तत्वम् । ३. MBP गुंफई। ४. P दिट्टाणं। ५. M समाणइं। ६. MBPK ऊरूखंभ ।
७. MBP ससुरयणु । ८. M सवित्थरु । १६. MBP मणिबंधु । २. BP समुदु णं । ३. MB कंचुउ; P कंबुउ and gloss शंखः । ४. M कहिं । - ५. M णिविड ।
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