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________________ १. १७.२. ] हिन्दी अनुवाद १७ सांप वशमें किये जाते हैं । सवारोंके द्वारा हाथी और घोड़े रोके जा रहे हैं, जैसे निराश आचार्यों द्वारा शिष्यों को रोक लिया जाता है । खच्चरोंको शिक्षा शब्द कहे जा रहे हैं, मानो मुनिवर व्रत और शिक्षा व्रतोंको दे रहे हैं । जहाँ प्याउओंपर ठहरे हुए प्रवासियोंके द्वारा कपूर से मिला हुआ पानी पिया जाता है । धत्ता - जिनके परकोटे चन्द्रमाको प्रभाके समान हैं ऐसे, गोपुर द्वारवाले हजारों जिनमन्दिरों, मठों, देवकुलों, विहारों, गृह विस्तारों, वेश्याओंके आवासों और विलासों में से ||१४|| १५ जो उसी प्रकार शोभित हैं कि जिस प्रकार निरन्तर सैकड़ों ग्रहोंसे आकाश | जिनके अग्र - भागपर स्वर्णकलश रखे हुए हैं, ऐसे घर इस प्रकार मालूम होते हैं, मानो उन्होंने जिनभगवान्का अभिषेक किया हो। जिनमें हाथके दर्पण विशेष ज्ञात नहीं होते, माणिक्योंसे रचित ऐसी दीवारोंमें, मदिरासे मत्त स्त्रियोंको अपना बिम्ब दिखाई देता है, सौत समझकर वह उनके द्वारा पीटा जाता है, जहाँ भ्रमर समूह अलकावलीसे घुल-मिल गया है, लेकिन चक्राकार घूमते हुए उसे श्वासके पवनने निकाल दिया है । वह आंगनकी बावड़ीके कमलोंपर जाता है, ओर पानीमें क्रीड़ा करती हुई बाला के शरीरपर बैठता है वहाँ, जिसे प्रचुर पराग प्रेम उत्पन्न हो गया है ऐसे कमलको सूर्य सम्बोधित करता है, ( उसे खिलाता है) उसीको मतवाला हंस खुटक लेता है । श्रीधर कमल और धनवान् ) का दुष्ट साथ असुन्दर होता है । घत्ता- वह नगर जहाँ देखो वहीं भला तथा चन्द्रकान्त-सूर्यकान्त मणियोंसे भूषित नया दिखाई देता है । जिसके ऊपर सूर्य विलम्बित है ऐसी धरतीके लिए मानो स्वर्गंने उसे उपहार के रूप में भेजा हो ॥ १५ ॥ १६ जहाँ मनोहर हाट-मार्गं शोभित हैं, जो मानो बहुसंस्तृत ( रत्नमणि आदि वस्तुओं | अनेक शस्त्रोंवाला ) मूर्ख शिष्यवर्ग हो । जहाँ मान, ( तेल मापनेका पात्र ), स्नेह ( तेल ) भरा हुआ शोभित है । जहाँ प्रस्थ ( अन्न मापनेका पात्र ) के द्वारा द्रोण इस प्रकार भर दिया गया है जिस प्रकार बाणोंसे द्रोणाचार्य आच्छादित कर दिये गये थे । स्त्रियोंके पैरोंसे विगलित कुमकुमसे युक्त मार्गसे जाता हुआ मनुष्य फिसल जाता है । रुनझुन करती हुई किंकिणियोंके स्वरोंवाले गिरते हुए गहनोंसे वह गिर पड़ता है । गजोंके मद और घोड़ोंके फेनोंकी कीचड़में और शंका उत्पन्न करनेवाले ताम्बूलोंकी पीकमें खप जाता है। जहां रत्नोंसे विजड़ित राजकुल ऐसा लगता है मानो आकाशसे अमरविमान आ टपका हो । जिन्हें धूपके धुएँसे मनमें शंका उत्पन्न हो गयी है ऐसे मपूर जहाँ मेघोंकी भ्रान्तिसे नृत्य करते हैं, जहाँ विजय नगाड़ों की दुन्दुभियोंके स्वरोंके कारण नर-नारियोंको कुछ भी सुनाई नहीं देता । जहाँ प्रांगण प्रदेशमें नवदिनकर की किरणोंसे आरक्त प्रभातके फैलनेपर घत्ता - विजयश्री में श्रेष्ठ राजकुमारोंके द्वारा चंचल चौगानोंसे प्रताड़ित गेंद ऐसी मालूम होती है, मानो लोगों में अनुराग उत्पन्न करनेवाले, परमतके वादी कवियों द्वारा लोगोंको भ्रमित कर दिया गया हो ॥ १६ ॥ १७ उसमें श्रेणिक नामका राजा है जो गारुड़ गुरु ( गरुड़ विद्याका जानकार) के समान, विज्ञातणाय ( नागों का जानकार न्यायका जानकार ) है जो कार्यों में कुशल फुरतीबाज और ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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