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________________ प्रथमं पर्व विदेहां यत्र जायन्ते धन्या ध्यानानियोगतः । तपसातो जनर्योग्यैर्विदेहो विषयो मतः ॥७५ कुण्डाख्यं मण्डनं भूमेः पत्तनं तत्र राजते । सत्तमैः सकलैः पूर्ण राजराजपुरोपमम् ॥७६ सिद्धार्थः सिद्धसर्वार्थः सिद्धसाध्या सुसिद्धिमाकनाथवंशोद्भुवां नाथो भूनाथः पाति तत्पुरम्।।७७ चेटकाद्रिसमुत्पना सिद्धार्थाब्ध्यवगाहिनी । तटिनीव रसेशस्य प्रियाभूत्प्रियकारिणी॥७८ विशुद्धकुलसंपन्ना गुणखानिर्गुणाकरा । सकला कुशला कार्ये त्रिशला या सुशोभते ॥७९ सेविता दिव्यकन्याभिर्धनदैर्धनसंचयः । उपासिता सदा देवैः षण्मासान्या च पूर्वतः ॥८. सा सुप्ता शयने शान्ता मातङ्गं गां हरिं रमाम् । दाम्नी चन्द्रं दिवानाथं मीनौ कुम्भं सरोवरम्।।८१ वाड़ि सिंहासनं व्योमयानं भूमिगृहं पुनः । रत्नौषमग्निमैक्षिष्ट स्वप्नान्षोडश चेत्यमून् ॥८२ खण्डमें विदेह नामक देश बहुत सुंदर ह । इसमें रहनेवाले स्त्रीपुरुष अपने शरीरके विशिष्ट गुणोंसे हमेशा विदेह-विशेष गुणसहित शरीरयुक्त होते हैं । वहांके रत्नत्रयधारक भाग्यशाली मुनि ध्यानरूपी अग्नि और तपश्चरणके द्वारा कर्मनाश करके विदेह-मुक्तावस्थाको प्राप्त होते हैं। अतएव सत्पुरुषोंने इस देशको · विदेह ' यह सार्थक नाम दिया है ॥ ७४-७५ ॥ [श्री महावीर जिनचरित्र ] इस विदेहदेशमें महासज्जनोंसे भरा हुआ, कुबेरकी अलका नगरीके समान सुंदर, भूमीका भूषण 'कुंड' नामक नगर शोभायमान हो रहा है ॥ ७६ ॥ जिनको सर्व उत्तम पदार्थोकी प्राप्ति हुई है, जिनका साध्य सिद्धिसम्पन्न था, जो आदर्श सफलताके धारक थे, और जो नाथवंश में उत्पन्न हुए पुरुषोंके नाथ-स्वामी थे ऐसे पृथ्वीपति सिद्धार्थ महाराज उस कुण्डपुरका रक्षण करते थे ॥ ७७ ॥ जैसे नदी पर्वतसे उत्पन्न होती है और समुद्रमें मिलती है, वैसे इस राजाकी रानी प्रियकारिणी चेटकरूप पहाडसे उत्पन्न होकर सिद्धार्थनृपतिरूप समुद्रमें जाकर मिली पी । राजा सिद्धार्थ समुद्रके समान रसेश थे । समुद्र रसेश ( जलपति ) होता है और राजा रसेश शृङ्गारादि-नवरसोंका अधिपति था । ऐसे सिद्धार्थ राजाकी प्रियकारिणी प्रिय पट्टरानी थी। रानीका दूसरा नाम त्रिशला था । वह त्रिशला रानी निर्दोष कुलमें उत्पन्न हुई थी। वह गुणोंकी खानि, गुणोंको उत्पन्न करनेवाली, कलासंपन्न, कार्यकुशल और आतिशय सुंदर थी । महावीर भगवान् इस रानीके गर्भमें आनेके छह महिने पहिलेसे ही देवकन्यायें रानीकी सेवा करती थीं। कुबेर रत्नवृष्टिसे रानीकी उपासना करने लगे थे, तथा देव भी अनेक दिव्य भोगोपभोगपदार्थ अर्पण कर सेवा करते थे ॥ ७८-८० ॥ किसी समय शान्तस्वभाववाली रानी शय्यापर सोयी थी। रात्रिके चौथे पहरमें रानीने हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, दो पुष्पमाला, चंद्र, सूर्य, दो मछलियां, दो कलश, सरोवर, समुद्र, सिंहासन, विमान, भूमिगृह ( नागभवन ), रत्नोंकी राशि और अग्नि इन सोलह स्वप्नोंको देखा ॥ ८१-८२ ॥ रानीने जागृत होकर अपने पति महाराज सिद्धार्थसे उन स्वप्नोंके फल सुने और पुष्पक नामक स्वर्गविमानसे च्युत हुए सुरेन्द्रको अपने गर्भमें धारण किया। हाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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