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पाण्डवपुराणम् विचित्राणि चरित्राणि चरमाङ्गादिदेहिनाम् । कथ्यन्ते सत्कथा सद्भिर्यत्र धर्मार्थवर्धिनी ॥६४ द्रव्यं क्षेत्र तथा तीर्थ संवेगो जायते यथा । सत्कथा सोन्यते शास्त्रे संवेगार्थप्रवर्धिनी ॥६५ वृषो वृषफलं यत्र वर्ण्यते विबुधैनरैः । निर्वगाय सुवेगेन कथा निर्वेजिनी मता ॥६६ स्वतत्त्वानि व्यवस्थाप्य परतत्त्वविनाशिनी । ऊहापोहार्थविज्ञानं सा कथा कथिता जिनः ॥६७ सम्यक्त्वगुणसंपूर्णा बोधवृत्तसमन्विता । नानागुणसमाकीर्णा सा कथा गुणवर्धिनी ॥६८ विशिष्टवेदसद्वयासद्वैपायनसमुद्भवा । कल्पनाकल्पिता प्रोक्ता विकथा पङ्कवर्द्धिनी ॥६९ द्रव्यं क्षेत्र तथा तीर्थ कालो भावस्तथा फलम् । प्रकृतं सप्त चाङ्गान्याहुरमनि कथामुखे ॥७० इत्याख्याय कथासारं पुराणं पावनं परम् । पुराणपुरुषाणां हि प्रोच्यते भारताभिधम् ।।७१ अर्थ जम्बूमति द्वीपे विस्तीर्णे विबुधैर्जनैः । भारतं संस्यमाभाति भारतीभरभूषितम् ।।७२ धैर्यवर्यखण्डेऽस्मिन्नार्यखण्डे सुमण्डिते । अखण्डाखण्डलाकारैर्जनैर्जीवनदायिभिः ॥७३ विदेहविषयो भाति विशिष्टेर्दहसद्गुणैः । विदेहा यत्र जायन्ते नरा नार्यश्च नित्यशः ।।७४
अनेक प्रकारके चरित्रका वर्णन करते हैं, तथा जिसमें जीवादिक द्रव्य, चंपा, पावादि पवित्र क्षेत्र एवं रत्नत्रयका वर्णन होता है वह सुकथा है ॥ ६३-६४ ॥ धर्म और धर्मके फलोंमें जो अत्यंत प्रीति उत्पन्न होती है उसे संवग कहते हैं। यह संवेग जिस कथाके द्वारा उत्पन्न होता है उसे विद्वानोंने शास्त्रोंमें संवेगार्थ बढानेवाली कथा कहा है ।। ६५॥ देह, भोग और संसारमें विरक्तता उत्पन्न होना निवेग कहा जाता है । निर्वेगके लिये जो कथा कही जाती है उसे निर्वेजिनी कथा कहते हैं। स्याद्वादके द्वारा जैनमतकथित जीवादितत्त्वोंकी व्यवस्था करके परमतके तत्त्वोंका खण्डन जिसमें किया जाता है उसे जिनेश्वरने ऊहापोहार्थविज्ञानी अर्थात् तर्कवितर्कयुक्त कथा-आक्षेपिणी कथा कहा है। जो सम्यक्त्वगुणसे परिपूर्ण है अर्थात् जो सम्यग्दर्शनको उत्पन्न करती है, सम्यग्ज्ञान तथा चारित्रसे युक्त है, जो अहिंसा, सत्य आदिक नाना गुणोंको बढ़ाती है उसे गुणवर्द्धिनी कथा अथवा विक्षपिणी कथा कहते हैं । वशिष्ट, वेदव्यास, द्वैपायन आदि मिथ्यात्वी ऋषियोंसे जिस कथाकी उत्पत्ति हुई है वह कल्पनाकल्पित होनेसे विकथा है और पापवर्धक है । कथाके प्रारंभमें द्रव्य, क्षेत्र, तीर्थ, काल, भाव, फल और प्रकृत ये कथाके सात अङ्ग आचार्योने कहे हैं ॥६६-७०॥ इस प्रकार कथामुग्ख कहकर जिसमें प्राचीन महापुरुषोंकी कथाका सार है तथा जो ' भारत ' नामसे प्रसिद्ध है उस अतिशय पवित्र पाण्डबपुराणको हम कहते हैं ॥ ७१ ॥ सज्जन और विद्वान लोगोंसे भरे हुए इस विस्तीर्ण जम्बूद्वीपमें सरस्वतीके अतिशयसे अलङ्कृत हुआ समृद्ध भरतक्षेत्र शोभायमान हो रहा है | इस भरतक्षेत्रमें धैर्ययुक्त श्रेष्ठ आर्योका निवास जिसमें है ऐसा मनोहर आर्यवंड है । इस में अखण्ड ऐश्वर्यके धारक इन्द्र के समान, जीवोंको अभयदान देनेवाले धनिक लोक रहते हैं ।।७२-७३। इस आर्य
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